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________________ विषयसूची ३५ विषय श्लोकाङक ८८ ८९-९० कृपणता का परिणाम दान में विलम्ब अच्छा नहीं फलेच्छारहित दान देना प्रियतम वस्तुओं को देना धर्मकार्य में कपट मत करना मुनियों को दान देना पुण्यदायक तीर्थ निर्वाहक को शुभ परिणति का फल दुःखोत्पादक पदार्थ कभी कभी सुनदायक करुणादान का फल दान का फल . ९२ ९३-९४ . ९५, ९७-१००, १०२ १०४ १०५ ५. दानफल ६*१-२ दाननिन्दकों के वचनपर ध्यान न देना दानप्रकरण में आत्मज्ञों को चुपचाप रहना चाहिये दान में हिंसा अथवा अंतराय कुलिङगी साधु बगुले के समान दान का निषेध करनेवाले नरक में जाते हैं प्राण बेचकर उपकार करनेवाले साधु मिथ्या उपदेश की भयानकता दुराग्रही मनुष्य को उपदेश निरर्थक उपदेश देने का कारण " दानविषय में श्रीश्रतज्ञ का कहना दीक्षाग्रहण के समय तीर्थकरों का दान देना दानान्तराय कर्म के क्षय से दान में प्रवृत्ति दान अशुभ कर्म का कारण नहीं सर्वज्ञों के समान अन्यों की प्रवृत्ति तप और शील के समान दान सत्पुरुषों को आहारादि देना चाहिये तीर्थकर भी दान देते हैं दान आरम्भजनित दोष से दूषित नहीं जिनेन्द्रों को दान इष्ट दान निषेध का कारण अदृष्ट है लुब्ध जन दान में बाधा पहुंचाते हैं कलियुग की कुशलता अपूर्व शक्ति अन्नदान का निषेध अनुचित ११-१३ १५-१६ १७ १९-२० २१-२५ २७ २८ २९ ३० ३१-३३
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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