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________________ विषय ३. आहारदानादि का फल आहारदान की प्रशंसा भाहार के अभाव से वर्णाश्रमों का नाश आहार के प्रकार आहारदाता की प्रशंसा आहार दान के फल दान से गुणों की प्रकटता सब दानों में आहारदान श्रेष्ठ आहारदान से कल्याणपरंपरा दाताओं के प्रकार विषयसूची दान न देनेवाला चिडिया के समान दान के बारेमें दृष्टान्त निदानभावना से रहित होकर दान देना दान कार्या दान पाथेय के समान धर्म से अचिन्त्य फलप्राप्ति दान से अनन्त सुख चार क्षेत्रों में दानरूप बीज बोना जिनमन्दिर बनानेवाले इन्द्र से श्रेष्ठ ४. साधुपूजा का फल गुणसंपादन की आवश्यकता पात्रपरीक्षा की आवश्यकता मुनिसंघ की प्रशंसा श्लोकाङक १-२#१ ३ * ५, ९-१२, १५-१६ ६-८ १३-१४ १७- १७*३. १८ १९-२२ २२१-२ २३-२४ २५ २६-२७ २८ २८१-२ २९ ३० ३१ ३२ सब लोग उनके दास वे अप्सराओं के प्रिय जिनमन्दिर निर्माण के फल जिनप्रतिमा, मंदिर तथा सिद्धान्त ग्रंथों के निर्माण का फल ३८-३९ जिनमन्दिर निर्माण से दुर्गति से उद्धार मंदिर निर्माण एक श्रेष्ठ पुण्यकर्म मन्दिरनिर्माता विरला मन्दिर के जीर्णोद्धार के फल जिनप्रतिमानिर्माण का फल प्रतिमाप्रतिष्ठा का फल जिनेन्द्रचरणों से प्रार्थना ३३ ३४-३७, ४३, ४८ ४० ४१ ४२ ४४-४७ ४९-५१, ५३, ५४, ५६ ५२, ५५, ५७ ५८ १. ३३ २ ३६
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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