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________________ - • उद्दिष्टान्तप्रतिमाप्रपञ्चनम् - -१८. ४६] 1476 ) साकारे वा निराकारे काष्ठादौ यन्निवेशनम् । सोऽयमित्यवधानेने स्थापना सा निगद्यते ॥ ४३४ 1477 ) आगामिगुणयोग्यो ऽर्थो द्रव्यं न्यासस्य गोचरः । तत्कालपर्ययाक्रान्तं वस्तु भावो ऽभिधीयते ।। ४३*५ 2 1478 ) यत्रातिथेयं स्वयमेव साक्षाज्ज्ञानादयो यत्र गुणाः प्रकाशाः । पात्राद्यवेक्षापरता च यत्र तत्सात्त्विकं दानमुदाहरन्ति ॥ ४४ 1479 ) निजस्तवनलालसैरलससादरैः सान्तरं " यशोलवसमाकुलैः कलितलोक संप्रत्ययम् । सर्व विभावितातिथिगुणं च यद्दीयते विहायिमितीरितं मतिमतां मतै राजसम् ॥ ४५ 1480) पात्रापात्रविचारणाविरहितं दूरादपास्ताद र भार्यासून नियोगिभिविरचितं चित्तादिशुद्धिच्युतम् । मात्सर्योपहतं विवेकविकलं यत्किंचना ऽपि च एतत्तामसमामनन्ति मुनयो दानं गतप्रार्चनम् ॥ ४६ ३७१ तदाकार अथवा अतदाकार भी लकडी व पाषाण आदिमें जो 'वह यह है' ऐसा अवधानपूर्वक आरोप किया जाता है उसे स्थापनानिक्षेप कहते हैं ।। ४३४ ॥ आगामी गुणपति के योग्य पदार्थ को द्रव्यनिक्षेप का विषय जानना चाहिये । तथा वर्तमानकालीन पर्याय से युक्त वस्तु को भावनिक्षेप समझना चाहिये ॥ ४३*५ ॥ जिस दान में अतिथि का साक्षात् स्वयं आदर किया जाता है, जिस में दाता के आवश्रद्धा तुष्टि आदि गुण प्रकाशमान होते हैं, तथा जिस में पात्र व देय पदार्थ आदि के विचार की तत्परता के साथ पात्र की मार्गप्रतीक्षा की जाती है, उसे सात्त्विक दान कहते हैं ॥ अपनी स्तुति सुन के अभिलाषी जो दाता आलस्य के साथ आदरयुक्त हो कर की कामना से आतुर होते हुए गर्वपूर्वक अतिथि के लोगों को प्रत्यय उत्पन्न कराने के लिये जो दान देते हैं, उसे विद्रन्मान्य गणधरादि राजस दान कहते हैं ॥ ४५ ॥ पात्र-अपात्र के विचार से रहित, आदर से पूर्णतया निरपेक्ष, मन व वचनादि की विशुद्धि से विहोन, मात्सर्य भाव से सहित ओर विवेक से विरहित जो कुछ थोडासा दान पत्नी ४३*४) 1 अवधारणात्, D नामात् गुणा भवन्ति । ४३*५ ) 1PD ° योगार्थो द्रव्यं. 2 PD पर्ययक्रान्तं वस्तु, D विद्यमानद्रव्यगुणाः । ४५ ) 1 निजलाध्यवाञ्छकैः 2 कदाचित् 3 दानम्. 4 राजसं दानम् । ४६) 1 आदररहितम्. 2 योग्यपात्रे. 3 कथयन्ति 4 इलाधारहितम् ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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