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________________ - धर्मरत्नाकरः - 1312 ) हेतोरात्मस्वभावस्य पूरणात्पर्व गीयते । पूजाक्रियाव्रताधिक्यं धर्मकर्मात्र बृंहयेत् ॥ १० 1313 ) यद्यत्र चित्तमालिन्यं शक्तिर्वापि न विद्यते । एकभक्तादिकं किंचिद्विधीयेत विशेषणम् ॥ ११ 1314) तदुक्तम् ततो ऽभिमतं बाह्यं येन चेतो न दुष्यति । जायते येन च श्रद्धा येन योगक्षतिर्न च ।। ११*१ 1315) बाह्यं तपः षड्विधमात्मशक्त्या तथान्तरङगं सकलं विभक्त्या । कर्मेन्दाहोर्ध्वगतिप्रकाशं विधीयतां पावकसंनिकाशम् ॥ १२ 1316 ) सर्वे सर्वविदो ऽप्यतीतजनने शार्दूलविक्रीडित प्रायाण्युच्चविधानकानि सकलान्यूचुश्च चक्रुः स्वयम् । छन्दांसीव सुसंहतानि श्रयति प्रस्तारभञ्ज्यादरादाचीर्णानि कियन्त्यपीत रजनैर्ब्रूमो वयं तद्यथा ।। १३ ३३० [ १६.१० स्वभावको पूर्ण करने रूप हेतु से अष्टमी चतुर्दशी आदि को पर्व कहा जाता है। पर्व दिनों में पूजा, क्रिया एवं व्रतों की अधिकता को बढाना चाहिये । ( अभिप्राय यह है कि अष्टमी आदि पर्व दिनों में आरम्भ के परित्यागपूर्वक उपवास व स्वाध्यायादि शुभ क्रियाओं में प्रवृत्त रहने से आत्मस्वभाव की पूर्णता होती है, अतः इनका पर्व यह नाम सार्थक है ) || १० || यदि उपवास के विषय में अपना चित्त मलिन है, अथवा उसके करने की शक्ति नहीं है, तो एक भक्त एकाशन व ऊनोदर - आदि कुछ विशेष करना चाहिये ॥ ११ ॥ सो ही कहा है जिस से चित्त दूषित ( मलिन) नहीं होता है, जिस से श्रद्धा उत्पन्न होती है और जिससे आत्मध्यान में बाधा नहीं आती है वह बाह्य तप माना गया है ।। ११*१॥ अनशन, अवमोदर्य वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्त शय्यासन और काय - State बाह्य तप छह प्रकार का है। उसे अपनी शक्ति के अनुसार करना चाहिये तथा अन्तरंग तप भी जो छह प्रकार का है उसे विभाग रूप से करना चाहिये । ये दोनों तप कर्म रूप इन्धन को जलाकर जीव की ऊर्ध्व गति को प्रगट कर देते हैं । इसलिये अग्नि के समान कर्म रूप इन्धन के जलानेवाले इन तपों का आचरण करना चाहिये ॥ १२ ॥ सब ही सर्वज्ञों ने वीतराग जिनों ने - पूर्व भव में सिंह की क्रीडा के समान भयानक ११) 1 D मलिनम् । १२) 1 अग्निसदृशम् । १३ ) 1 D अरहंत: 2 कृतवन्त: 3 D छन्दप्रसारवत् मिलितानि ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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