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-१५. ६१७७] - सामायिकप्रतिमाप्रपञ्चनम् - 1256 ) संस्पर्शनं संश्रवणं च दुरादास्वादनाघ्राणविलोकनानि ।
दिव्यान्मतिज्ञानबलाद्वहन्तः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ॥ ६११२ 1257) कोष्ठस्थधान्योपममेकबीजं संभिन्नसंश्रोत पदानुसारि ।
चतुर्विधं बुद्धिबलं दधानाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ॥ ६१*३ 1258 ) प्रज्ञाप्रधानाः श्रवणाः समृद्धाः प्रत्येकबुद्धा दश सर्वपूर्वः।
प्रवादिनो ऽन्टाङ्गनिमित्तविज्ञाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ॥६१७४ 1259 ) अणिम्नि दक्षाः कुशला महिम्नि लघिम्नि शक्ताः कृतिनो गरिणि ।
मनोवपुर्वाग्बलिनश्च नित्यं स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ॥ ६१*५ 1260 ) सकामरूपित्वशित्वमैश्यं प्राकाम्यमन्तधिमथाप्तिमाप्ताः ।
तथाप्रतीघातगुणप्रधानाः स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः॥ ६१७६ 1261) जङ्घावलिश्रेणिफलाम्बुतन्तुप्रसूनबीजाङकुरचारणाह्वाः।।
नभोङ्गणस्वैरविहारिणश्च स्वस्ति क्रियासुः परमर्षयो नः ॥ ६१*७
जो महर्षे दिव्य मतिज्ञान के सामर्थ्य से दूर देशगत वस्तु के स्पर्श, शब्दश्रवण, आस्वादन, सूचना ओर अवलोकन को धारण करते हैं, ( अर्थात् विशिष्ट बुद्धि ऋद्धि के प्रभाव से जो स्पर्शनादि इन्द्रियों के द्वारा अतिशय दूर देशगत स्पर्शनादि के ग्रहण करनेमें समर्थ होते हैं) वे महर्षि हमारा कल्याण करें॥ ६१*२ ॥
कोठे में स्थित धान्य के समान, एक बीज, संभिन्न श्रोतृ और पदानुसारी इस प्रकार से चार प्रकार को बुद्धि ऋद्धि के धारक महर्षि हमारा कल्याण करें ॥ ६१*३ ।।
प्रज्ञाप्रधान श्रवण, प्रत्येक बुद्धि से समृद्ध, प्रकृष्टवादी और अष्टांग निमित्तों के ज्ञाता महर्षि हमारा कल्याण करें ।। ६१*४ ।।
अणिमा ऋद्धि में निपुण, महिमा ऋद्धि में कुशल, लघिमा ऋद्धि में समर्थ, गरिमा ऋद्धि में कृती - कुशल, मनबलो, कायबली और बचनबली महर्षि हमारा कल्याण करें।।६१२५
कामरूपित्व. वशित्व, ईशित्व, प्राकाम्य. अन्तर्धि-अन्तर्धान और- आप्ति, प्राप्ति इन विक्रिया ऋद्धि भेदों के साथ अप्रतिघात विक्रिया ऋद्धि में प्रधानता को प्राप्त महर्षि हमारा कल्याण करें॥ ६१*६ ॥
__ जंधाचारण, आवलिचारण, श्रेणिचारण, फलचारण, अम्बु (जल) चारण, तन्तु. चारण, प्रसूनचारण, बीजचारण और अंकुरचारण, ये चारण ऋद्धि के धारक तथा आकाशरूप आँगन में यथेच्छ विहार करनेवाले महर्षि हमारा कल्याण करें ॥ ६१*७ ॥
६१.३) 1 कोठस्थ । ६१७) 1 PD जपावल: ।