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-१५. ४९.२] - सामायिकप्रतिमाप्रपञ्चनम् - 1231) पारं गयाणं परमं गयाणं परे रयाणं परमावगाणं ।
परोवउत्ताण णमो गुरूणं मुत्तीण पंचण्हमनिण्हवाणं ॥ ४९*१ 1232) णिच्चं जलंतुज्जलकेवलाणं लोयप्पईवाण मणुस्सगाणं ।
समग्गदव्वाण सपज्जवाणं तच्चं मुणंताण णमो जिणाणं ॥ ४९*२
भाग पर न्याल करे । 'ॐ हौं णमो उवज्झायाणं शिरसः पश्चिमे' मस्तक के पीछे अर्थात् शिखापर न्यास करे । 'ॐ हः णमो लोए सव्वसाहूणं शिरसः उत्तरे' मस्तक के उत्तर प्रदेश पर न्यास करे।
पुनस्तानेव मंत्रान् शिरःप्राग्भागे शिरसो दक्षिण पश्चिमे उत्तरे च क्रमेण विन्यसेत्पुनः इन मंत्रोंका उच्चारण कर के मस्तक के पूर्वभाग, दक्षिण भाग और पश्चिम भागपर न्यास करना चाहिये।
तदनन्तर दस दिशाओं का बन्धन करना चाहिये । उसका विधि - बायें हाथ की प्रदेशिनीपर पंचनमस्कार मंत्र लिखकर पूर्वादि दसों दिशाओं में बन्धन करना चाहिये । जैसेॐ हां णमो अरहत्ताणं पूर्वस्यां दिशि, ॐ हीं णमो सिद्धाणं आग्नेय्यां दिशि, ॐ हूं णमो आइरियाणं दक्षिणस्यां दिशि, ॐ हैं। णमो उवज्झायाणं नैर्ऋत्यां दिशि, ॐ न्हः णमो लोए सव्वसाहूणं पश्चिमस्यां दिशि, ॐ हां णमो अरहन्ताणं वायव्यां दिशि, ॐ हीं णमो सिद्धाणं उत्तरस्यां दिशि, ॐ हूं णमो आइरियाणं ऐशान्यां दिशि ॐ हौं णमो उवज्झायाणं अधरस्यां दिशि तथा ॐ हः णमो लोए सव्वसाहूणं ऊर्ध्वायां दिशि, इस प्रकार से दसो दिशाओं में दिग्बन्धन करना चाहिये।
जो ज्ञानके दूसरे किनारे को प्राप्त हो चुके हैं, जो उत्कृष्ट आत्मस्वरूप को प्राप्त हुए हैं, जो पौरव - प्राचीन हैं, जो परभावग - उत्कृष्ट शुद्ध भाव को प्राप्त हुए हैं, तथा जो परोपकार में निरत हैं ऐसे मूर्तिमान् पाँच अनिन्हव – कुछ नहीं छिपाने वाले - स्वरूप पाँच गुरुओं को मैं नमस्कार करता हूँ ।। ४९* १ ॥
जो निरन्तर प्रकाशमान निर्मल केवलज्ञान के धारक, दीपक के समान लोक के प्रकाशक- अविनाशी तथा संपूर्ण द्रव्यों और उनकी संपूर्ण पर्यायों के स्वरूप को यथार्थ रूप से जानते हैं, ऐसे उन जिनेश्वरों को मैं नमस्कार करता हूँ ॥ ४९७२ ।।
४९५१) 1 D मुक्तिवल्लभानां पञ्चानाम् । ४९१२) 1 D°मणस्सराणं ।