________________
- धर्मरत्नाकरः -
[ १५. ४९५३1233) सामंतसीमंतगर्दसणाणं बुड्डाणमाणंदमहासमुद्दे।।
संपुण्णविण्णाणधणाण णिच्चं णमोत्थु सिद्धाण णिरंजणाणं ॥ ४९*३ 1234 ) पहूण पंचायरणप्पवेसे पडूण पंचायरणोवएसे ।
पहूण पंचायरणप्पदाणे णमोत्थु धम्मायरियाण णिच्चं ॥ ४९*४ 1235) पहूण पंचायरणप्पवेसे पहण पंचायरणोवएसे।
विस्सस्सभावस्स व भासयाणं णमो जिणाणं जयडिंडिमाणं ॥ ४९*५ 1236) पहूण पंचायरणप्पएसे पहूण पंचिंदिय-णिग्गहम्मि ।
पहूण पंचत्तणिवारणम्मि णमोत्थु साहूण जिणप्पियाणं ।। ४९*६ 1237 ) पहाणहेऊणं महापहणं मुत्तीण पंचण्हिमपंचमाणं ।
णमोत्थु पंचायरणप्पमाणं सत्तीण पंचण्हिमकुंठियाणं ॥ ४९*७ 1238 ) णमो सियावायहियस्स सत्ततच्चावलीसद्दहणप्पगस्स ।
सत्तू व संखेवणणिच्चलस्स फुरंतणाणस्स सुदंसणस्स ॥ ४९*८ __ जिनका दर्शन आसमंतात् सीमातक है,जो आनन्दस्वरूप महासमुद्र में डूबे हुए हैं, जो संपूर्ण विज्ञानघन हैं - जिनका ज्ञान गुण ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से पूर्ण प्रकट हो चुका हैतथा जो निरंजन - कर्मकालिमा से रहित हैं, ऐसे सिद्धों को मेरा सर्वदा नमस्कार हो ॥४९*३
जो ज्ञानादिक पाँच आचारों में प्रवेश करने, उक्त पाँच आचारों के उपदेश देने तथा इन्हीं पाँच आचारों के देने में समर्थ हैं ऐसे धर्माचार्यों को हम सदा नमस्कार करते हैं ।।४९१४॥
जो उक्त पाँच आचरणों में प्रवेश करने में समर्थ हैं, जो पाँच आचारों का उपदेश देते हैं, जो सर्व जगत् के पदार्थों को प्रकाशित करते हैं तथा जिनका जयजयकाररूप वाद्य हमेशा बजता है, ऐसे जिनेश्वरों को हम नमस्कार करते हैं ।। ४९*५ ॥
जो पंचाचारों का पालन करने व पाचों इन्द्रियों के निग्रह करने में समर्थ हैं, जो मत्यु के निवारण करने का सामर्थ्य रखते हैं तथा जी जिनेश्वर की भक्ति करते हैं उन साधुओं को तथा जिन प्रतिमाओं को मेरा नमस्कार हो । ४९*६ ॥
जो मुक्ति के महान् प्रभु तथा प्रधान हेतु हैं, तथा पाँचों आचारों की प्रमुख शक्ति है, उन जिनेश्वरों को मैं नमस्कार करता हूँ (?) ॥ ४९*७ ॥
जो स्याद्वाद से हितकर है, तथा जीवादिक सात तत्त्वों में श्रद्वान स्वरूप है, स्वरूप
४९*३) 1D सिद्धाः. 2 D अनदर्शन. 3 उपाध्यानां । ४९*४) 1 P°णिव्वं । ४९१५) 1D भासमाणं । ४९*६) 1 P°णिव्व हम्मि । ४९*७) 1 D प्रधानवस्तु. 2 D पञ्चज्ञानशक्ति । ४९५८) 1 सप्तभङगी।