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________________ [१५. पञ्चदशो ऽवसरः] [ सामायिकप्रतिमाप्रपञ्चनम् ] 1167) सामायिकान्तर्गतभावभेदामुपार्चनां वच्मि यथाविधानम् । . विभोगिनां भोगिविभूतिधात्रीं क्वचिनिजानन्दरसैकपत्रीम् ॥ १ 1168) सर्वदेशसमयेष्वदृश्यतादौस्थ्यतः किल वृथार्चनार्हतः । व्योमपुष्करसमत्वभागिनो' इत्थमभ्यधुरंहो कुवादिनः ।। २ 1169) अभावमात्मनो ऽप्येवं वदतां हि विदांवरः । अप्युपेक्ष्य पुरापायस्वदाढायोत्तरं ददौ ॥ ३ ..... अब मैं सामायिक शिक्षाव्रत के अन्तर्गत भावों के भेदभत जिनपूजा का वर्णन आगमोक्त विधि के अनुसार करता हूँ। वह जिनपूजा भोगों से रहित लोगों के लिये, विलासी जन के वैभव देने वाली तथा क्वचित् वह आत्मिक आनन्दरूप रसका एक पात्र भी है ॥ १ ॥ अरिहन्त चकि सकलचारित्र - मुनिधर्म-और देशचारित्र-गहिधर्म-दोनों में नहीं देखे जाते हैं, अतएव निश्चित ही उनकी दुर्गति है। और जब इस प्रकार से उनका अस्तित्व ही सिद्ध नहीं है तब आकाशकुसुम की समानता को धारण करने वाले उनकी पूजा व्यर्थ ही है, ऐसा कितने ही कुवादोजन कहा करते हैं ॥ २ ॥ ___ इस प्रकार से आत्मा के अभाव को भी कहने वाले कुवादियों को उस आत्मा के अभावकी उपेक्षा कर के विद्वानों में श्रेष्ठ आचार्य ने स्वदाढाय - अपने पक्ष की पुष्टि के लिये पूर्व में उत्तर दिया है ।। ३ ।। १) 1 पूजाम्. 2 भोगरहितानाम्. 3 P°भोग. 4 पूजाम् । २) 1 गगनारविन्दतुल्यस्याहंत 2 उक्तवन्तः । ३) 1 P°अप्युपेक्षर्यपुण्याय ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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