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- धर्मरत्नाकरः -
893 ) चारित्रिणां मुमुक्षूणां विषयग्रहदूषिणाम् । स्तुत्या वाणी तदीयैषा निवृत्तिस्तु महाफलम् ॥ ४८ 894 ) न राक्षसा अध्यनिवृत्तिभाजः सर्वाशिनः सन्ति तपोवियुक्ताः । कर्तुं निवृत्ति प्रविनिन्द्य भक्ष्यात् विवेकमासाद्यं तरां दुरापम् ॥ ४९ 895 ) स्वभावतः कस्यचिदेव किंचिद् भक्ष्यं त्वभक्ष्यं प्रथितं त्रिलोक्याम् । संसारमुन्मोक्षिषु तद्विशेषाद् व्रतं विना यान्ति यतो न सिद्धिम् ॥ ५० 896 ) अपि च त्यजतां दूरं जिह्मतां ' महतामपि ।
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अभीष्टं सिध्यति प्रायो वहतां निश्चयव्रतम् ॥ ५१
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897 ) संप्रधार्य' बहुधेति कारणं प्रोज्झनीयमिदमष्टकं बुधैः ।
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देवता व्रतवतां नमन्ति यद् यान्ति नैव नरकं व्रतोचिताः ॥ ५२
जो सदाचार का पालन किया करते हैं, जिनकी संसार से मुक्त होने की प्रबल इच्छा होती है, और जो विषयरूप पिशाच से द्वेष करते हैं - उसके वशीभूत नहीं होते हैं - वे यह कहा करते हैं कि उक्त माँसादि का परित्याग अतिशय फलप्रद है । यह वाणी प्रशंसनीय है ॥ ४८ ॥ सादिक से विरत न होकर सब कुछ खानेवाले राक्षस भी तप से शून्य नहीं होते हैं । अतिशय दुर्लभ विवेक को प्राप्त करके उक्त घृणित मांसादि भक्ष्य वस्तुओं से विरत होने के लिये (उद्यत होते हैं ) ॥ ४९ ॥
तीनों लोकों में स्वभाव से किसी विरले ही व्यक्ति को कुछ भक्ष्य और कुछ अभक्ष्य रूप से प्रसिद्ध होता है, अर्थात् भक्ष्याभक्ष्य विषयक इस प्रकार का विचार विरले ही भव्य जीव को हुआ करता है । परंतु जो संसार से मुक्त होना चाहते हैं, उनको भक्ष्य और अभक्ष्य का विशेष विचार ध्यान में रखना पडता है, क्योंकि, व्रत बिना सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती है ॥५०॥ कपट का दूर से त्याग कर के ही दृढतापूर्वक व्रत को धारण करनेवाले महापुरुषों को भी प्रायः उनका अभीष्ट सिद्ध होता है । तात्पर्य यह कि पुरुषों को भी दृढतापूर्वक व्रत को धारण करना पडता है ॥ ५१ ॥ मद्य, माँस, मधु और पाँच उदुम्बरफल इन आठों के त्याग के कारणों का अनेक प्रकार से विचार कर के विद्वान् जनों को उनका परित्याग करना चाहिये । कारण यह कि व्रतों का ऐसा माहात्म्य है कि जिस से देवता भी व्रतीजनों की वन्दना करते हैं तथा वे व्रतीजन नरक में नहीं जाते हैं ॥ ५२ ॥ सो ही कहा गया है -
मुक्ति प्राप्त करने के लिये महा
४८) मांसादिनिवृत्तिः । ४९ ) 1 P° तपोऽपि युक्ताः ° 2D प्राप्य । ५० ) 1 भक्ष्यं वस्तु युक्तअयुक्तं कृतं निषेधितम् । ५१ ) 1P D समलताम्. 2 धरतां धारकाणां वा । ५२ ) 1 इति कारणं धृत्वा विचार्य च . 2 त्यजनीयम्. 3 मद्यमांसमधु उदुम्बरपञ्च 4 P व्रतसंयुक्ताः, D योग्याः ।