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________________ २०० - धर्मरत्नाकर: [१०. ३६767) हास्यात् पितुश्चतुर्थे ऽस्मिन् व्रते ऽनन्तमती स्थिता । निःकाङ्क्षव्रतमास्थायं कल्पं द्वादशमाविशत् ॥ ३६ 768) उपेन्द्राः प्रत्युपेन्द्राश्च काङ्क्षाभरवशीकृताः । पुराणेषु प्रसिद्धानि भेजुर्दुःखानि कानि नो ॥ ३७ 769) श्रीविजयो ऽमिततेजा महाकाङ्क्षापकाङ्क्षकौ । षड्विंशतिप्रमाणाहं कृतप्रायोपवेशनौं ॥ ३८ 770) कल्पे त्रयोदशे स्थित्वा ततश्च्युत्वा क्रमादिमौ । जगाम माधवः श्वभ्रं रामो ऽप्यच्युतमुत्तमम् ॥ ३९ । युग्मम् 171) तीव्र तपो जिनवरैर्विहितं मुनीनां संवादमन्दिरमिदं न भवेत्तथा हि । आचाममज्जनविकर्तननाग्न्ययोगा दूर्ध्वस्थभुक्तित इति प्रवदन्त्यविज्ञाः ॥ ४० पिता की हँसी से अनन्तमतीने चौथे ब्रह्मचर्य व्रत को धारण किया व इच्छारहित उस व्रत में स्थिर होकर सहस्रार स्वर्ग में देव हुई ॥ ३६॥ तीव्र इच्छाओं के अधीन हो कर नारायण और प्रतिनारायण पुराणों में जिनका वर्णन किया है ऐसे कौनसे दुःखों को नहीं प्राप्त हुए हैं ? तात्पर्य यह कि नारायण व प्रतिनारायण अतृप्त रहने के कारण नरक दुःख भोगते हैं । निदान से उन को भोगों की तीव्र अभिलाषा निरन्तर बनी रहती है ।। ३७ ॥ उत्कट इच्छा से सहित त्रिपृष्ठ नारायण का पुत्र विजय और उस से रहित अर्ककीर्तिका पुत्र अमिततेज ये दोनों छब्बीस दिन पर्यन्त प्रायोपवेशन संन्यास को करके तेरहवें स्वर्ग में उत्पन्न हुए। वहां रहकर आयु के अन्त में मरण को प्राप्त होनेपर विजय अनन्तवीर्य नामका नारायण हो कर नरक को गया और अमिततेज अपराजित नामका बलदेव हो कर उत्तम अच्युत स्वर्ग को प्राप्त हुआ ॥ ३८-३९ ।। तीर्थंकरों ने मुनियोंके लिये जिस घोर तप का विधान किया है वह प्रमाण का ३६) 1 PD ब्रह्मचर्य. 2D स्थित्वा । ३७) 1 नारायणा:.2 प्रतिनारायणाः, D हरिप्रति हरिः.3 प्रापुः सेवयामासुः । ३८) 1 त्रिपृष्ठनारायगपुत्रः, D प्रथ [म] नाम. 2 अर्ककीति विद्याधरपुत्रः. 3 काङक्षासहितकाङक्षारहितो. 4 दिनानि. 5 कृतसंन्यासौ, D दिनषड्विंशति प्रायोंगमरणं कृत्वा । ३९) 1 शान्तिनाथचरित्रे प्रसिद्धकथात्र। ४०) 1 छदिते जलादि आचमनं तथा स्नानं न कुर्वन्ति, नग्नाः भ्रमन्ति, ऊर्ध्व भञ्जन्ति, D केचित् परमतयः वदन्ति । सर्व रम्यं तथापि उर्वभोजनं नाग्न्यं स्नानरहितं आचमनरहितं यत् तत् दूषणम्. 2 अज्ञाः, D अज्ञातगुणाः ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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