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- धर्मरत्नाकरः -
712 ) इत्थं पानीयदानं हुतवहहवनं तर्पणं स्यात्पितॄणामित्थं वा द्वादशाहो मृतवति स्वजने मेलनं यत्पितॄणाम् । गौरेका तीर्थदेवव्रतगणनिलयस्तत्प्रदानं विधानादित्याद्यन्योपदेशात्प्रभवति कुमतं यच्च तद् ग्राहितं स्यात् ॥ ८० 713) ऐकान्तिका च्चन्द्रमतिर्यथा सन्यशोधरः संशयतो ऽथ मौद्यात् । एकेन्द्रियाद्यास्तदसंज्ञिनश्च व्युद्ग्राहिताः पञ्च कुदर्शनानि ॥ ८१
714) स्वाभाविकाच्छम्भुह रिद्विषन्तो
विद्याधराः केऽपि च के ऽपि देवाः । रत्नत्रयाश्चर्य विलोकिनो ऽपि
परिष्वजन्ते' न च तत्त्यंजन्ति ॥। ८२ । युग्मम्
चक्रलाञ्छनः ।
उक्तं महागमे ऽपीत्थं प्रायोवृत्त्या निदर्शनम् ॥ ८३
715) सुभौमो ग्राहिताद्भेजे ' श्वभ्रे
[९.८०
देश के चला आया - (अगृहीत ) मिथ्यात्व कहा है, जो दुस्तर है- कष्ट से नष्ट होनेवाला है ॥ ७९ ॥
इसी प्रकार पानी देना, अग्नि में हवन करना, पितरों को तर्पण करना, किसी स्वजन के मरनेपर बारहवें दिन में पितरों का मेलन करना, तथा एक गायको सब तीर्थ, देव व व्रतसमूह का घर मानकर योग्य विधि से देना इत्यादिक उपदेश से जो कुमत - मिथ्यात्व - उत्पन्न होता है उसको ग्रहित मिथ्यात्व जानना चाहिये ॥ ८० ॥
चन्द्रमति - यशोधर की माता ऐकान्तिक मिथ्यात्व से यशोधर राजा संशय मिथ्यात्व से एकेन्द्रिय आदि पाँच प्रकार के मूढ प्राणी मिथ्यात्व के व्युद्ग्राहित ( वश ) हुए हैं ॥ ८१ ॥
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शंभू, हरि (नारायण) प्रतिशत्रु, कोई विद्याधर और कितने ही देव ये स्वाभाविक अगृहीत - मिथ्यात्व के वशीभूत होकर रत्नत्रय के माहात्म्य को देखते हुये भी मिथ्यात्व का ही आलिंगन करते हैं, उसका त्याग नहीं करते हैं । ८२ ॥
चक्रवर्ती सुभम गृहीत मिथ्यात्व के वश होकर नरक में सुख को प्राप्त हुआ इस प्रकार महागम में बहुत कर के ये उदाहरण कहे गये हैं ॥ ८३ ॥
८१) 1 P°एकान्तिकाद्वक्रमतिर्यथा. 2 ग्राहिणः । ८२ ) 1 स्वीकुर्वन्ति 2 मिथ्यात्वम् । ८३ ) 1 सेवितवान. 2 नरके 3 सौख्यम्. 4 दृष्टान्तम् ।