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१४२ . - धर्मरत्नाकरः -
. [७.६६543) आगमाधिगमनीयमशेषं निर्दिशन्ति खलु धर्मविशेषम् ।
आगमव्यपगमे हि नियोगाज्जायते सकलधर्मविलोपः ॥ ६६ 544) आलोकेन विना लोको मार्ग नालोकते यथा।
विनागमेन धर्मार्थी धर्माध्वानं जनस्तथा ॥ ६७ 545) उच्छिद्यमानो यत्नेन धर्मानुच्छेदवाञ्छया ।
____ आगमः सति सामर्थ्य रक्षणीयो विचक्षणः ॥ ६८ 546) श्रेष्ठबुद्धिनरवाहनादिभिर्लेखित सकलमेव शासनम् ।
पालितं परमतद्विधिर्यथाकारि भव्यनिवहस्य दर्शितः॥६९ 547) श्रेयसा क्षितिमुजाप्यनामिकाजन्मनि श्रुतविधिय॑रच्यतं ।
तत्फलं च समलम्भिं विश्रुतं दानतीर्थपरिवर्तनादिकम् ॥ ७० ___ संपूर्ण धर्म विशेष - श्रावक और मुनियों का मूल व उत्तर गुणादिरूप आचार तथा जीवादिक तत्त्वों का स्वरूप - आगम से जाना जाता है, ऐसा विद्वान कहते हैं । ऐसे आगम का लोप होने पर नियमसे समस्त धर्म का ही लोप संभव है ॥६६ ।।
जिस प्रकार पथिक जन प्रकाश के विना अभीष्ट मार्ग को नहीं देख सकते हैं, उसी प्रकार धर्म के अभिलाषी जन उस आगम के विना धर्म के भी मार्ग को नहीं देख सकते हैं ॥ ६७॥
धर्म की परम्परा का नाश न हो, ऐसी अभिलाषा रख कर जिन विद्वानों में उस आगम के संरक्षण करने का सामर्थ्य है उन्हें नष्ट किये जानेवाले उस आगम का प्रयत्न पूर्वक रक्षण करना चाहिये ॥ ६८॥
श्रेष्ठ बुद्धि के धारक नरवाहन आदि राजाओं ने संपूर्ण जिनागम को लिखाया है तथा उसका संरक्षण भी किया है। साथ ही उन्हों ने भव्य समूह के लिये उस की उत्कृष्ट विधि को भी दिखलाया है । (नरवाहन राजा का दूसरा नाम भूतबली है । उन्हों ने श्री धरसेन आचार्य के पास आग्रायणीय पूर्वगत पंचम वस्तु के चतुर्थ प्राभुत का अध्ययन किया और तदनन्तर उन्हों ने षट्खण्डागम की रचना की है) [विबुध श्रुतावतार] ।। ६९॥
श्रेयान् राजा ने अनामिका नामक कन्या के भव में श्रुतविधि नामक उपोषण व्रत (१५८ दिनों का) को किया था । उसका उसने दान तीर्थ प्रवृत्ति आदि रूप प्रसिद्ध फल भी प्राप्त किया था ॥७०॥
६६) 1 D पठनीयं. 2 विनाशे । ६७) 1 धर्ममार्गम् । ६९) 1 नरवाहनादिभि: समस्त आगम जयधवला महाधवलादि लिखापितम्. 2 D कृतः । ७०) 1 धर्मस्थापनवाञ्छया. 2 निर्नामिकामवान्तरश्रतविधिः कृतः. 3D श्रुतस्कन्ध विधिः.4 रचितः कृतः. 5 प्राप्तम्. 6 D विख्यात ।