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________________ -७. ४७]] - ज्ञानदानफलम520) दौर्गत्यं यदुदात्तचित्तसुधियो व्याधिव्यथा भोगिनां दौर्भाग्यं रमणीयरूपरमणीलोकस्य लक्ष्मीवताम् । तारुण्ये मरणं जितस्मरवपुःश्रीणां जरा श्रीमतां नैवेदं समवत्स्यताविकरुणं कर्माभविष्यन्न चेत् ॥ ४४ 521) अनु गुणे विगुणं विगुणे ऽन्यथा परिजने स्वजनेष्टजनादिकम् । भवति कर्मणि हन्त शरीरिणां नरपताविव पत्तिजनादिकम् ॥ ४५ 522) किंचाविवादविषयं विहाय लोकायतं विषयलोलम् । कर्माण्येव मन्यन्ते सामान्ये नास्तिकाः सर्वे ॥ ४६ 523) संयमभाजो जनमनितपूजनभाजनं जना यशसाम् । दृश्यन्ते द्वन्द्वद्वयवियोगिनो योगिनः सुखिनः ॥ ४७ यदि निर्दय कर्म नहीं होता तो जिनका मन उदार और बुद्धि निर्मल है ऐसे पुरुषों को दारिद्रय नहीं प्राप्त होता, भोगी जन को रोग पीडा नहीं घेरती, सुंदर रूपयुक्त रमणियों को दुर्भाग्य (पतिका वियोग आदि) नहीं प्राप्त होता, धनिकों का तारुण्य में मरण नहीं होता, तथा सुन्दरतासे कामदेव को जीतनेवाले श्रीमान् लोगों को वृद्धावस्था नहीं प्राप्त होती ॥ ४४ ॥ खेद की बात है कि कर्म के होने पर जिस प्रकार राजा के अनुकूल व प्रतिकूल रहते हुए उसके पादचारी सैनिक आदि प्रतिकूल व अनुकूल होते हैं, उसी प्रकार कर्मोदयवश प्राणियों के परिजन (सेवकजन) के अनुकूल होने पर उसके पुत्रादिक स्वजन और इष्ट मित्र आदि विगण-प्रतिकल -होते हैं तथा कभी पत्रादिक स्वजन और इष्टमित्रादि के अनकल होने पर परिजन प्रतिकूल होते हैं ॥ ४५ ॥ विषयासक्त लोकायतिक - नास्तिक चार्वाक लोग - कर्म को नहीं मानते हैं । वह अपने वाद का विषय नहीं है । उनको छोडकर अन्य सब ही आस्तिक जन - आत्मा और परलोक को मानने वाले - सामान्य से कर्मों को मानते ही हैं ।। ४६ ॥ ___संयमका परिपालन करनेवाले सत्पुरुष लोगों के द्वारा की गयी पूजा के और यश के पात्र होते हैं। जो योगीजन द्वन्द्व युगल से - आरम्भ व परिग्रहरूप क्लेशद्वय से - रहित हो चुके हैं, वे लोक में सुखी देखे जाते हैं ॥ ४७ ॥ ४४) 1 दरिद्रम्, D दुर्गतिः. 2 बुद्धियुक्तस्य. 3 P° समवत्स्यताद्विकरुणम्, D अस्थास्यत. 4 निर्दय । ४५) 1 गुणयुक्ते. 2 अनुगुणम्, D गुणरहिते परिजने सानुकूलं भवति. 3 पदातिजनादिकम् । ४६) नास्तिकमतान्तरितम् । ४७) 1 D° जोऽजनि. 2 P° जनितपूजना. 3 कथंभूतास्ते. 4 के ते योगिनः ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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