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धर्म रत्नाकरः -
481) संकेताद्यं च नित्ये चेदनित्ये ऽपि वरं हि तत् । यमेन यादृशी नीता या माता तादृशी सुता ॥ ८ 482) अथ वेदस्य कर्तारं नरं नोपलभामहे' |
अपौरुषेयतामस्य परिभाषामहे ततः ।। ९ 483) वेदकर्तृ परिज्ञातृशून्य विश्वमिदं सदा ।
इति यो वेत्ति सर्वज्ञः स एव भगवानिति ।। १० 484 ) किं च वेदो निजं नार्थ समर्थो भाषितुं स्वयम् ।
त॑द्व्याख्यातुरसर्वज्ञे रागित्वे विप्रलम्भनात् ॥ ११ 485) यज्ञं तत्फलसंबन्धं विबुध्यन्ते बुधाः कुतः । अबोधान्न प्रवर्तेरेन्निवर्तेरन्न वा सदा ॥ १२
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भी योग्य नहीं है । क्योंकि वह तो उनके अनित्य होने पर भी हो सकता है, उसका अपहरण कुछ चोर नहीं कर लेते हैं । ( अभिप्राय यह है कि 'गो' आदि शब्दों के अनित्य होने पर भी सादृश्य के वश उन से प्रतिनियत अर्थ के बोध होने में कोई बाधा नहीं है । उदाहरणार्थ, जिस 'गो' शब्द को सुनकर उस से पशुविशेष में संकेत ग्रहण किया गया था, उसी के समान दूसरे गो शब्दों के सुनने से उक्त पशुविशेष का बोध हो जाता है ) ॥ ७ ॥
यदि कहा जाय कि संकेत आदि तो नित्य में होते हैं, तो यह भी युक्ति संगत नहीं है । क्योंकि उक्त संकेत आदि सदृशता के वश शब्द के अनित्य होनेपर भी भली भाँति हो सकते हैं। ठीक भी है । क्योंकि, यम जिस प्रकार की माता को ले जाता है उसी प्रकार की पुत्री को भी वह ले जाता है ॥ ८ ॥
यदि आगम को अपौरुषेय मानने वाले यह कहें कि चूँकि वेदका कर्ता कोई पुरुष पाया नहीं जाता है, इसलिये हम उसे अपौरुषेय कहते हैं । तो इस पर हम कहते हैं कि जिसने इस प्रकार से तीनों कालों में वेदके कर्ता और उसके ज्ञाता से रहित समस्त लोक को देख लिया है वही सर्वज्ञ परमेश्वर हो सकता है । फिर भला उस सर्वज्ञ परमात्मा का निषेध क्यों किया जाता है ? वह योग्य नहीं है ॥ ९-१० ॥
इसके अतिरिक्त वेद अपने अर्थ को स्वयं कहने के लिये तो समर्थ हैं नहीं । इसलिये उसका कोई व्याख्याता अवश्य होना चाहिये । परन्तु उसका वह व्याख्याता यदि असर्वज्ञ और रागी -द्वेषी हुआ तो उससे श्रोताओं की वंचना हो सकती है ॥ ११ ॥
वेद के व्याख्याता के विना विद्वज्जन यज्ञ और उसके फल के संबंध को कहाँ से जान सकते हैं ? और तद्विषयक ज्ञान के विना न तो वे सदा उक्त यज्ञादिक के विषय में प्रवृत्त हो हो सकते हैं और न उस से निवृत्त भी हो सकते हैं ॥ १२ ॥
८) 1 P D समयाद्यन् । ९ ) 1 वयम् 2 वेदस्य 3PD कथयामहे वयम् । ११) 1D वेदस्य. 2 PD वञ्चनात् । १२ ) 1 न प्रवर्तन्ते, D वेदज्ञानाभावात् प्रवर्तना निवर्तना भवति ।