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________________ १२० धर्मरत्नाकर: 448) श्लाघ्याः सुलब्धजन्मानः स्पृहणीया विवेकिनाम् ' पूजनीया जनस्योन्ये' धन्याः शास्त्रविशारदाः ॥ २८ 449) श्रूयन्ते श्रुतिनो ऽश्रान्तं श्रेणिभिः श्रीमतां श्रिताः । विश्राणयन्तः श्रेयांसि श्रुतीनां विश्रुतश्रुताः ॥ २९ 450) तपसा रिक्तानामपि शम्भूनां संभवन्ति यत्कमलाः । तरलितभुवनस्यान्ता स्वच्छ तचिन्तामणिस्फुरितम् ।। ३० 3 3 451) अभव्यसेनप्रायाणां यत्सुखं पूज्यता च यत् । तथापि श्रुतकल्पांगसेवा सूते महाद्भुतम् ।। ३१ 452) धनश्री प्रभृतीनां च जातिस्मृत्यादिकं च यत् । ज्ञानकामदुधापूर्व सेवा संजनयत्यदः ॥ ३२ 453) कुर्वाणा गीर्वाणा निर्वाणार्थं श्रुतस्य बहुमानम् । श्रूयते श्रुतभाजां महामुनीनां च बहुमानम् ॥ ३३ [६.२८ उनसे भिन्न जो भाग्यशाली जन उस शास्त्रज्ञान से विभूषित होते हैं, वे प्रशंसा के पात्र हैं, उनका मनुष्यजन्म सफल है, उन को विवेकी जन चाहते हैं, तथा जन समुदाय उनकी पूजा करता है ॥ २८ ॥ जिन का कि धनिकों के समूहोंने आश्रय लिया है ऐसे कितने ही प्रसिद्ध श्रुतशाली महाभाग कल्याणकारी आगमों का निरन्तर दान करते हुए सदा सदुपदेश देते हुए - सुने जाते हैं ॥ २९॥ तपश्चरण से रहित भी शंभुओं को धनवानों को जो समस्त जनसमूह के मन को चंचल करनेवाली लक्ष्मी प्राप्त होती है उसे श्रुतज्ञान रूपी चिन्तामणि रत्न का प्रभाव समझना चाहिये ॥ ३० ॥ अभव्य सेन जैसे आत्मानुभव रहित मुनियों को जो सुख, पूज्यपना ( और यश ) प्राप्त हुआ है उसे श्रुतज्ञानरूपी कल्पवृक्ष की सेवा उत्पन्न करती है, यह महान् आश्चर्य है ॥ ३१ ॥ धनश्री आदिकों को जो जातिस्मरण आदि हुआ है उसे ज्ञानरूप कामधेनु की पूर्व काल में की गई अपूर्व सेवाने ही उत्पन्न किया है || ३२ ॥ देवगण मोक्षप्राप्ति के लिये श्रुत का बहुमान और उस श्रुत के धारक महामुनियों का भी बहुमान करते हुए सुने जाते हैं ॥ ३३ ॥ २८) 1 D लोकस्य. 2 D ज्ञानिनः 3 श्रुतज्ञाः । २९ ) 1 D पक्तिभि: 2 PD दापयन्तः 3 D विख्यातश्रुताः । ३० ) 1 तपोभ्रष्टानामपि 2 रुद्राणां धनाढ्यानामित्यर्थः, D तीर्थंकराणाम्. 3 लक्ष्म्यः । ३१) 1 सदृशानाम्. D प्रमुखाणाम्. 2 कल्पवृक्ष: 3 उत्पादयति । ३२ ) 1 राजपुत्री श्रुतस्कन्धव्रतेन D आर्या. 2 एतज्जातिस्मृत्यादिकम् ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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