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________________ दानफलम् 393) न चेयं क्वापि सिद्धान्ते निषिद्धा किंतु साधिता । स्थाने स्थाने soamir' वन्दनाया विधानतः ।। १०३ 394) आरम्भान्तरमन्तरे गुरुतरं गेहाद्य सद्गोचरं मुञ्चत्यत्रं समग्रमग्रिमगुणग्रामं मुनेर्मानतः । मान्यं सोऽन्यगुणान्तरं च लभते छिन्द्यात्क्वचिंत्संशयं दुष्टाने न वन्दना यदि वदेद्दाने समाधिः समः ॥ १०४ 395) वन्दनादिगुणान् दिव्यानन्यूनानभिवाञ्छता' । दानं विशेषतो देयं यत्यवस्थानकारणम् ॥ १०५ 396) मुनीनां ज्ञानादौ भवति बहुमानः प्रकटित -५..१०६ ] - स्तदन्येषां मार्गो जिनवचनभक्तिः परहितम् । धने ऽनास्थाभावो गुरुपुरुषकृत्यानुकरणं कियन्तः कथ्यन्ते वितरणगुणाः सिद्धयनुगुणाः ॥ १०६ १०७ यह वन्दना किसी भी सिद्धान्त में निषिद्ध नहीं है, किन्तु उसकी आवश्यकता ही कही गई है। आग स्थान स्थानपर उक्त निर्दोष वन्दना का विधान किया गया है ॥ १०३ ॥ वन्दना के समय गृहस्थ चूँकि बीच में गृहादि के असद्गोचर ( ? ) अन्य भारी आरम्भ छोड़ देता है, मुनि सम्मान से वह समस्त श्रेष्ठ गुण समूहको एवं आदरणीय अन्य गुणान्तर कभी प्राप्त करता है तथा किसी विषय में उत्पन्न हुए संशय को नष्ट करता है; इसीलिये वह वन्दना दोषयुक्त नहीं है; ऐसा यदि कहा जाता है तो यही समाधान समानरूप से दान के विषय में भी जानना चाहिये ॥ १०४ ॥ जो सत्पुरुष सम्पूर्ण वन्दनादि अनेक दिव्य गुणों की प्राप्ति की इच्छा करता है उसे मुनिजन को धर्म में स्थिर करनेवाले दान को विशेष रूपसे देना चाहिये ॥ १०५ ॥ 'आहारादिक देने से मुनियों के ज्ञानादि गुणों में बहुमान प्रकट होता है, अन्य लोगों को दान मार्ग का परिचय होता है - एक को दान देते हुए देख कर अन्यजन भी उसमें प्रवृत्त होते हैं, जिनवचन में भक्ति उत्पन्न होती है उससे परका पात्र का हित होता है ( अथवा दाता का उत्कृष्ट हित होता है), दान देने से धन में अनास्था भाव - उसकी नश्वरताका निश्चय उत्पन्न होता है, तथा महापुरुषों के कृत्यों का - उदारता, औदार्य, वत्सलता एवं प्रभावना आदि समीचीन कार्यों का अनुसरण होता है । सिद्धि के अनुकूल उन दानके प्रचुर गुणों में से भला यहाँ कितनों का वर्णन किया जा सकता है ? ॥ १०६ ॥ - १०३) 1 वन्दनायाः । १०४ ) 1 दाने. 2 वन्दनाविषये 3 प्रकारेण । १०५ ) पुरुषेण । १०६) । श्रयांसादिकरणं भवति. 2 दान ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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