SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -२.५५] - अभयदानादिफलम् - 114) निर्बाध सिद्धिसौख्यं विषयविरहितं भाविकाले ऽप्यनन्तं दूरं सर्वोपमानं वचनविषयतातीतमात्मस्वभावम् । यत्कामं कामयन्ते भवभयविधुरा आस्तिकाः शुद्धबोधाः सिद्धा यद् मुञ्जते तत्त्रुटति न नियतं शंबलं श्रीदयाप्तम् ॥ ५४ 115) स्वनिःश्रेयससंभवं सुखफलं ख्यातं परोक्षं परं प्रत्यक्षं सदयस्य मूरिरिव स प्रप्रार्थ्यते भूतले । आनन्दाथकणप्रपूर्णनयनैः संपीयमानो जनैविश्वासोर्जननीव सुप्रभुरिव प्रीतैः कृतज्ञैः परैः ॥५५ इति श्री-जयसेन-मुनि-विरचिते धर्मरत्नाकरनामशास्त्रे अभयदानदयाहिंसालफप्रभाववर्णनो नाम द्वितीयो ऽवसरः ॥ २ ॥ संसार के भय से व्याकुल हो कर यथार्थ वस्तु स्वरूप का श्रद्धान करनेवाले सम्यग्ज्ञानी जीव सब प्रकार की बाधा से रहित, इन्द्रिय विषयों से विहीन, भविष्य में अनन्त कालतक अवस्थित रहनेवाले, सब उपमाओं से दूर-अनुपम, वचन की विषयता से रहित-अनिर्वचनीयऔर आत्मा के स्वभावभूत जिस सुख की अतिशय इच्छा किया करते हैं तथा सिद्धजीव जिसका उपभोग करते हैं वह पाथेयभूत शाश्वतिक सुख उस उत्तम जीवदया के निमित्त से प्राप्त होता है जो फिर कभी नष्ट नहीं होता॥५४॥ स्वर्ग व मोक्ष का उत्कृष्ट सुखरूप फल अत्यन्त परोक्ष है, ऐसा प्रसिद्ध है। परन्तु दयालु भव्य को वह प्रत्यक्ष रूपसे प्राप्त होता है। पृथिवी पृष्ठ पर उस अभयदाता को भव्यजन आचार्य के समान मानते हैं। मनुष्य उसे आनन्दाश्रुकणों से भरी हुई आँखों से देखते हैं। वे उसके विषय में प्रेम तथा कृतज्ञता व्यक्त करते हैं व उसे विश्वासपात्र व्यक्ति के जननी के समान तथा उत्तम राजा के समान समझते हैं ।।५५।। इस प्रकार श्री जयसेन मुनि विरचित धर्मरत्नाकर शास्त्र में अभयदान, दया तथा हिंसा के फलोंका वर्णन करनेवाला दूसरा अवसर समाप्त हुआ ॥२॥ ५४) 1 अतिशयेन. 2 वाञ्छन्ति. 3 संसारभयभीता:. 4 जैनाः । ५५) 1 स्वर्गापवर्गसंभवम् . 2 आचार्य इव. 3 सदयः. 4 दृश्यमानः. 5 P°कृतज्ञः, कार्यवेत्ता, 6 P 'इति द्वितीयोवसरः ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy