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________________ ३६ - धर्मरत्नाकरः - 110) व्यासङ्गै' रहिताः क्षुदादिभिरपि प्रोद्यद्दिनेशप्रभा यत्कल्पद्रुमभोगदत्तनिलयाः पल्यत्रयं प्राणितम् । नीरोगा गमयन्ति भोगधरणीजाताः पुमांसः स्त्रियः पञ्चत्वे' त्रिदशा भवन्ति तदिदं जीवावनोत्थं फलम् ॥ ५० 111 ) भोगभूमाश्च तिर्यञ्चो निःप्रपञ्चा मनुष्यवत् । त्रिपल्यजीवितप्रान्ते सुराः स्युः प्राणिरक्षणात् ॥ ५१ 112) स्वायत्तं कुरुते यतो ऽपि न परं संसारसौख्यं वरं यन्निःश्रेयसंदस्युमङ्गर्जं महासप्तार्चिराच्छेदकम् । यत्त्रिशत्त्रितयान्वितोदधिं सुखं सर्वार्थसिद्धेः सुराः सेवन्ते सकलामराधिपनु तास्तत्प्राण्य हिंसार्जितम् ।। ५२ 113) मातुर्यशोधरस्यात्र कथा दृष्टान्तगोचरी । विश्वसेनस्य तथा क्षेमस्य मन्त्रिणः ।। ५३ [ २.५० भोभूमि में उत्पन्न हुए स्त्री-पुरुष आसक्ति व भूख-प्यास आदि की बाधा से रहित, उदित होते हुए सूर्य के समान कान्ति से रमणीय तथा कल्पवृक्षों के द्वारा दिये गये भोगों व भवन से संयुक्त हो कर जो तीन पल्य तक रोगरहित जीवित को धारण करते हैं तथा मरण के पश्चात् जो स्वर्ग लोक में देव होते हैं यह सब उनके जीवरक्षण का फल है ॥ ५० ॥ प्राणि रक्षण - अभयदान के निमित्त से भोगभूमि में उत्पन्न हुए तिर्यंच भी माया व्यवहार से रहित हो कर मनुष्यों के समान वहाँ तीन पल्य तक सुखपूर्वक जीवित रहते हैं । तत्पश्चात् मरण को प्राप्त हो कर वे भी देव होते हैं ॥ ५१ ॥ सर्वार्थसिद्धि के देव समस्त इन्द्रों के स्तुति का स्वीकार करते हुए तेतीस सागरोपम कातक जिस सुख का उपभोग किया करते हैं वह उन्हें पूर्वकृत प्राणि रक्षण से उस अभय दान के प्रभाव से ही प्राप्त हुआ करता है । उस सुख को छोड कर दूसरा कोई उत्तम संसार का सुख प्राणी को स्वाधीन नहीं करता है । वह मोक्षसुख के चोररूप काम की भयानक अग्नि को - उसकी बाधा को - नष्ट करनेवाला है ॥ ५२ ॥ दृष्टान्त स्वरूप यहाँ राजा यशोधर और उसकी माता की, घण्टा नाम की भार्या से युक्त विश्वसेन की तथा क्षेत्रनामक मंत्री की भी कथा हिंसा व अहिंसा के प्रसिद्ध है ॥ ५३ ॥ विषय में ५०) 1 आरम्भप्रारम्भादिभि: 2 जीवितम् 3 भोगभूमावुत्पन्नाः 4 मृतें सति देवा भवन्ति 5 जीवरक्षणोत्पन्नं फलम् । ५२ ) 1 स्वाधीनम्. 2 मोक्षस्य. 3 काम. 4 सागरम् । ५३ ) 1 दृष्टान्तयोग्या ।
SR No.090136
Book TitleDharmaratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysen, A N Upadhye
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1974
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size38 MB
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