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- अभयदानादिफलम् -
108) गौरीशाविव भर्त्रभिन्नतनवस्तारुण्यमञ्जू षिका गोत्राकाशविरोचनोपमसुतोत्पत्त्या स्तुतोत्पत्तयः । रूपस्यावधयो नयस्य निधयः शीलस्य वेला इव. प्राणित्राणंसमाश्रयाच्चिरतरं राजन्ति रामा जने ॥ ४८ 109) कामं' रूपेण भोगैः सुरपतिमसमत्यागतः कर्णमुख्यांस्तारेशं कायकान्त्या रविमपि महसा मारुतं साहसेन । मान्धातारं जयन्तः शुचिरुचिरचरित्रेण सत्येन धर्मं * कीर्तिव्याप्तत्रिलोका अभयवितरणात् पुण्यवन्तस्तपन्ति ॥ ४९
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होते हैं। उनसे मानो भोगोपभोग स्थान प्राप्त करने के लिये स्वयं प्रार्थना करते हैं- भोगोपभोग उनको स्वयं प्राप्त होते हैं । - तथा वे स्त्रियों की नयन पंक्तियों की माला को धारण करते हैं अर्थात् उनको सुन्दर स्त्रियाँ प्रेम से देखती हैं ॥ ४७ ॥
जिन स्त्रियों ने पूर्व में प्राणिरक्षा का भली भाँति सहारा लिया है - जो प्राणिहिंसा से विरत रही हैं - वे उसके प्रभाव से पार्वती और महादेव के समान पति से अभिन्न शरीरवालीपरस्पर में अतिशय अनुरक्त युवावस्था की पिटारी, सौन्दर्य की सीमा - अतिशय सुन्दर, न्याय-नीति का भंडार और शीलरूप समुद्र का मानो किनारा होती हैं । अपने वंशरूप आकाश में सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र को उत्पन्न करने के कारण लोक में उनके जन्म की स्तुति की जाती है । इस प्रकार से वे चिरकाल तक जनसमूह मध्य में शोभायमान होती हैं ॥ ४८ ॥
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अभयदान दे कर पुण्य का संचय करनेवाले भाग्यशाली जन अपने सौन्दर्य गुण से कामदेव को, भोगों से इन्द्र को, असाधारण दान गुण से कणं आदि प्रसिद्ध दानवीरों को, शरीर की कान्ति से चन्द्र को, तेजस्विता से सूर्य को, साहस से पवनपुत्र हनुमान - को, पवित्र व सुन्दर चरित्र से मांधाता राजा - युवनाश्व राजपुत्र को, तथा सत्यगुण से धर्मराज- युधिष्ठिर- को जीत कर अपनी कीर्ति से त्रैलोक्य को व्याप्त करते हुये दीर्घकाल तक तेजस्वी जीवन को बिताते हैं ।। ४९ ।।
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(४८) 1 ईश्वरी. 2 सूर्य. 3 कृत्वा 4 स्तवितोत्पत्तयः 5 प्राणिरक्षणसमाश्रयात् । ४९ ) 1 कन्दर्पम् 2 आश्चर्यदानात् 3 तेजसा 4 युधिष्ठिरम् 5 पुण्यवन्तः पुरुषास्तपन्ति संतापयन्ति एतान् । रूपेण काम संतापयन्ति, भोगैरिन्द्रम्, असदृशत्यागतः कर्णसदृशान् चन्द्रं कायकान्त्या सूर्य प्रतापेन, पवन साहसेन बलेन, मान्धातारं नृपं शुचिनिर्मलचरित्रेण, युधिष्ठिरं सत्येन । कस्मात् अभयदानात् । किंविशिष्टाः पुण्यवन्तः कीर्तिव्याप्तत्रिलोकाः ।