________________
देवागमादि विभूतियाँ आप्त-गुरुत्वकी हेतु नहीं देवागम-नभोयान-चामरादि-विभूतयः । मायाविष्वपि दृश्यन्ते नातस्त्वमसि नो महान् ॥१॥
( हे वीरजिन ! ) देवोंके आगमनके कारण-स्वर्गादिकके देव आपके जन्मादिक कल्याणकोंके अवसरपर आपके पास आते हैं इसलिए-आकाशमें गमनके कारण-गगनमें बिना किसी विमानादिकी सहायताके आपका सहज-स्वभावसे विचरण होता है इस हेतु—और चामरादि-विभूतियोंके कारण—चँवर, छत्र, सिंहासन, देवदुन्दुभि, पुष्पवृष्टि, अशोकवृक्ष, भामण्डल और दिव्यध्वनि-जैसे अष्ट प्रातिहार्योंका तथा समवसरणकी दूसरी विभूतियोंका आपके अथवा आपके निमित्त प्रादुर्भाव होता है इसकी वजहसेआप हमारे—मुझ-जैसे परीक्षा-प्रधानियोंके—गुरु-पूज्य अथवा आप्तपुरुष नहीं हैं भले ही समाजके दूसरे लोग या अन्य लौकिक जन इन देवागमनादि अतिशयोंके कारण आपको गुरु, पूज्य अथवा आप्त मानते हों। क्योंकि ये अतिशय मायावियोंमें—मस्करिपूरणादि इन्द्रजालियोंमें भी देखे जाते हैं। इनके कारण ही यदि आप गुरु, पूज्य अथवा आप्त हों तो वे मायावी इन्द्रजालिये भी गुरु, पूज्य तथा आप्त ठहरते हैं; जब कि वे वैसे नहीं हैं। अतः उक्त कारण-कलाप व्यभिचार-दोषसे दूषित होनेके कारण अनैकान्तिक हेतु है, उससे आपकी गुरुता एवं विशिष्टताको पृथक