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प्रस्तावना
देवागम और समन्तभद्र
१. देवागम :
(क) नाम
१
प्रस्तुत कृतिका नाम 'देवागम' है । प्राचीन ग्रन्थकारोंने प्रायः इसी नाम से इसका उल्लेख किया है । अकलङ्कदेवने इसपर अपना विवरण ( अष्टशती - भाष्य ) लिखनेकी प्रतिज्ञा करते हुए उसके आरम्भ में इसका यही नाम दिया है और उसे 'भगवत्स्तव' ( भगवान् का स्तोत्र ) कहा है । विद्यानन्द ने भी ‘अष्टसहस्री' ( पृ० २९४ ) में अकलङ्कदेव के अष्टशतीगत 'स्वोक्तपरिच्छेदे' पदकी व्याख्या 'देवागमाख्ये शास्त्रे' करके इसका 'देवागम' नाम स्वीकार किया है। वादिराज, हस्तिमल्ल आदि ग्रन्थकारोंने भी अपने ग्रन्थों में समन्तभद्रकी उल्लेखनीय कृतिके रूपमें इसका इसी नाम से निर्देश किया है । आश्चर्य नहीं कि जिस प्रकार 'कल्याणमन्दिर',
१. ' कृत्वा विव्रियते स्तवो भगवतां देवागमस्तत्कृतिः ।"
- अष्टश० प्रारम्भिक पद्य २ ।
२. ' इति देवागमाख्ये स्वोक्तपरिच्छेदे शास्त्र...।'
४. देवागमनसूत्रस्य श्रुत्या सद्दर्शनान्वितः ।
-अष्टस० पृ० २९४ ।
३. 'स्वामिनश्चरितं तस्य कस्य नो विस्मयावहम् । देवागमेन सर्वज्ञो येनाद्यापि प्रदर्श्यते ॥
—पार्श्व० च० ।
- विक्रान्त कौ० प्र० ।