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समन्तभद्र-भारती [परिच्छेद ७ विज्ञप्ति-मात्रताके एकान्तमें साध्य-साधनादि नहीं बनते साध्य-साधन-विज्ञप्तेर्यदि विज्ञप्ति-मात्रता । न साध्यं न च हेतुश्च प्रतिज्ञा-हेतु-दोषतः ॥८॥
'यदि साध्य और साधन ( हेतु ) को विज्ञप्ति ( ज्ञान ) के विज्ञप्तिमात्रता मानी जाय-ज्ञानके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं ऐसा कहा जाय तो साध्य, हेतु और द्वितीय चकारसे दृष्टान्त ये तीनों नहीं बनते; क्योंकि ऐसा कहने में प्रतिज्ञादोष और हेतुदोष उपस्थित होता है—प्रतिज्ञासे स्ववचन-विरोध आता है और हेतुप्रयोग असिद्धादि दोषोंसे दूषित ठहरता है।'
व्याख्या-साध्य-युक्त पक्षके वचनको 'प्रतिज्ञा' और साधनके वचनको ‘हेतु' कहते हैं । संवेदनाद्वैतवादी (बौद्ध ) अपने संवेदनातत्त्वको सिद्ध करनेके लिये कहते हैं कि नीला पदार्थ और नीलेका ज्ञान ये अभेद रूप हैं; क्योंकि इनकी एक साथ उपलब्धिका नियम है (सहोपलम्भ-नियमात् ) । जैसे नेत्रविकारीके दो चन्द्रमा
का दर्शन होते हुए भी चन्द्रमा वास्तवमें एक ही है वैसे ही नीला • पदार्थ और नीलज्ञान दो न होकर ज्ञानाद्वैतरूप एक ही वस्तु है। इस कथनमें प्रतिज्ञा-दोष जो घटित होता है वह स्ववचनविरोध है; क्योंकि अपने द्वारा कहे हए नीला-पदार्थरूप धर्मधर्मीके भेदका और हेतु तथा दृष्टान्त दोनोंके भेदका अद्वैतके साथ विरोध है। सर्वथा अद्वैत-एकान्तकी मान्यतामें इनका कहना नहीं बनता और इसलिये साध्य-साधनादिके भेदरूप ज्ञानके अभेदरूप विज्ञानाद्वैतताका कथन करनेवालेके स्ववचन-विरोधरूप प्रतिज्ञा-दोष सुघटित होता है।
हेतु-दोष यह घटित होता है कि उक्त हेतु नील और नील