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देव शिल्प
पुष्पवाटिका एवं वृक्ष प्रकरण
मन्दिर एवं अन्य धार्मिक, सामाजिक प्रयोग की वास्तु निर्मितियों में शोभा एवं सुविधा के लिये पुष्पवाटिका लगाई जाती है तथा वृक्षारोपण किया जाता है। पर्यावरण की शुचिता के लिये यह उपनिमि है। वृक्ष रोप एवं वाटिका जगाते समय यह स्मरण रखें कि ऊंचे वृक्ष मन्दिर के दक्षिण एवं नैऋत्य भाग में ही लगायें। इन वृक्षों की छाया दोपहर (प्रातः ९ बजे से दोपहर तीन बजे) के मध्य मन्दिर अथवा वास्तु पर नहीं पड़ना चाहिये। जिन वृक्षों को मन्दिर प्रांगण में लगाने का निषेध किया है, उन्हें कदापि न लगायें, अन्यथा अनिष्ट होने की आशंका निरंतर बनी रहेगी ।
पुष्प वाटिका
मन्दिर में पूजन के लिये पुष्पों की आवश्यकता होती है। इसके लिये उपयोगी पुष्पों के पौधे एवं वृक्ष पुष्पवाटिका में लगाना चाहिये। पुष्पवाटिका में निरन्तर विविध रंगों के पुष्पों से वातावरण प्रफुल्लित रहता है। साथ ही शुभ मंगलमय वातावरण निर्मित होता है। पुष्पवाटिका लगाते समय ध्यान रखें कि उसे मन्दिर के उत्तर, पूर्व, ईशान भाग में ही लगायें । आग्नेय दक्षिण एवं नैऋत्य में पुष्प वाटिका लगाने से कष्ट एवं मानसिक संताप होता है। उत्तर पूर्व, पश्चिम एवं ईशा में पुष्प वाटिका लगाने से पुत्र, धन, धान्य आदि का लाभ होता है।
वृक्ष
मन्दिर में दूध वाले वृक्ष नहीं लगायें। यदि प्रांगण में पूर्व से लगे हुए हों तो नागकेशर, अशोक, अरोता, बकुल, पास, शमी, शालि इत्यादि सुगंधित वृक्षों को लगाने से यह दोष दूर हो जाता है। कंटीले वृक्ष मन्दिर में न लगायें, इनसे मन्दिर एवं समाज दोनों के लिए कष्टकारी स्थिति निर्मित होती है। मन्दिर प्रांगण में फलदार वृक्ष न लगायें। नारियल लगा सकते हैं किन्तु केवल दक्षिण एवं नैऋत्य दिशा में ही लगाएं। फलदार वृक्षों की लकड़ी भी गन्दिर निर्माण के लिए उपयोग न करें। नीम, इमली इत्यादि वृक्ष असुरप्रिय होने से मन्दिर प्रांगण होने से मन्दिर प्रांगण में न लगाना ही उत्तम है। इन जनआवागमन बाधित होता है।
वृक्ष का नाम
पोपल
पीपल
णकर
पाकर
वट
चट
उदुम्बर
उदुम्बर
वृक्षों को विभिन्न दिशाओं में लगाने का फल
दिशा
पूर्व
पश्चिम, दक्षिण
दक्षिण
उत्तर
पश्चिम
पूर्व
उत्तर
दक्षिण
फल
भय
६२
शुभ
पराभव
शुभ, धनागम राजकीय कष्ट
शुभ, मनोरथ पूरक
नेत्ररोग
शुभ