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________________ ४७० (देव शिल्प दिक्साधन दीर्घदेवकुलिकादेवायत्तनदैघ्यदोलाद्राविड़द्वारपालघनदधरणी ध्वजध्वजादंडध्वजाधारध्वांक्षनन्दिनीनन्दीनर थरनर्तकी- छंदनवरंग दिशा का ज्ञान करने की क्रिया प्रासाद, गृह का टेढ़ापः। लम्बाई लघु मंदिर, भ्रमती के स-मुख स्थित सह मन्दिर, देवों की पंचायत लम्बाई झूला, हिण्डोला अधिक श्रृंगों वाले प्रासाद की दीवार, जंघा चौकीदार, दरवाजे का रक्षक कुबेर, उत्तर दिशा के अधिपति देव गर्भगृह के मध्य नींव में स्थापित नवमी शिला पताका, झंडा, ध्वजा ध्वजा लटकाने का दण्ड ध्वजा रखने का कलावा कोका कोआ . . . .. .. पंच शाखा वाला द्वार कोणी, भद्र के पास की छोटी कोनी पुरुष की आकृति वाली पट्टी, मानवाकृतियों की पंक्तिः नाच करती हुई पुतली जिसकी तल विभक्ति बराबर न हो वह महामंडप जिसमें चार मध्यवर्ती तथा बारह परिधीय रतंभों की ऐसी संयोजना होती है कि उससे नौ खांचे बन जाते हैं. हाथी मध्य भाग बिना रुपक की सादी जंधा गर्भ भेद दो जाति की मिश्र आकृति वाली छत, एक प्रकार की अलंकृत छत, जिस पर मंजूषाकार सूच्यग्रों की डिजाइन होती है पानी निकलने का परनाला, नाली आवृत्त सोपा-नयुक्त प्रवेश द्वार, बलाणक कोना दक्षिण भारतीय विमान का वह खुला भाग जो प्रक्षित और तोरण युक्त होता है। अल्प नासिका या क्षुद्र नासिका छोटो होती है तथा महानासिका उससे बड़ी होती है। नागनाभिनागरीनाभि भेदगाभिच्छद नालगाल मंडपनासकनासिका
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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