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________________ (देव शिल्प अष्टापदप्रासाद इसका निर्माण वीर विक्रम प्रासाद के पूर्वोक्त मान से करें तथा उसमें कोण के ऊपर एक एक तिलक चढ़ावें। तिलक संख्या कोण श्रृंग संख्या कोण ६० प्रस्थ १२० प्रत्यंग मद्र कोणी नन्दी शिखर कुल २२१ कुल ४ तुष्टि पुष्टिप्रासाद इसका निर्माण अष्टापद प्रासाद के पूर्वोक्त मान से करें तथा उसमें भद्र के ऊपर ४ के स्थान पर ५ उरुश्रंग चढ़ायें। श्रृंग संख्या तिलक संख्या कोण . ६० कोण . ४ प्ररथ १२० प्रत्यंग भद्र कोणी नदी शिखर - - - कुल २२५ कुल ४ तीर्थंकर प्रभु के जिनालय उपरोक्त माग से ही बनाना श्रेयस्कर है। दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में मंदिर एवं शिखर का प्रमाण एक सा रखें । केवल प्रतिमा के स्वरूप में अंतर रखें। जिनालय निर्माण का पुण्य अर्जन करने वाले आवक परमपूज्य आचार्य परमेष्ठी के निर्देशन एवं आशीर्वाद पूर्वक ही जिनालय का निर्माण करें।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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