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________________ (देव शिल्प) (२४) भूमिश्चयन जब उपासक की भावना जिन मन्दिर निर्माण करने की होती है तब वह सर्वप्रथम उपयुक्त शूमि का चयन करता है। शुभ लक्षणों से युक्त भूमि पर निर्माण किया गया मन्दिर दीर्घकाल तक उपासकों की आराधना स्थली बना रहता है। साथ ही आने वाली पीढ़ियां भी परम्परा से सन्मार्ग का आश्रय लेकर आत्या कल्याण करती है। __ भूमि का मन करते समय का स्प, नस, गंध, वर्ण तशा परिकार देखा जाता है। शास्त्रोक्त विधियों से भूमि का परीक्षण किया जाता है। भूमि के नीचे भी अपवित्र शल्य न हों, इसका भी निराकरण किया जाता है। भूमि पर निंद्य लोगों का आवास होना भी अनुपयुक्त: है । वहां पर भद्य, मांसादि सेवन करने वालों का आवास होना अथवा मांसाहारी भोजनालय का निकटस्थ होना भी अनुपयुक्त है। ऐसे स्थान, जहां पर धर्म पालन एवं साधना में विघ्न आले हों, मन्दिर निर्माण के लिये अनुपयुक्त है। शुभ भूमि के लक्षण ___ जो भूमि अनेक प्रशंसनीय औषधि अथवा वृक्ष लताओं से शोभित हो, जिसका स्वाद मधुर हो, गंध उत्तम हो, स्निग्ध हो, गड्ढों एवं छिद्रों से रहित हो, आनन्द वर्धक हो, वह भूमि मन्दिर निर्माण के लिये श्रेष्ठ होगी। कंकरीली, पत्थरों से युक्त, उबड़-खाबड़ भूमि मन्दिर के लिये अनुपयोगी है।* ___ कटी फटी भूमि, हड्डी आदि शल्य युक्त भूमि, दीमक युक्त भूमि तथा उबड़-खाबड़ भूमि मन्दिर निर्माण के लिये उपयोगी नहीं है। ऐसी भूमि मन्दिर निर्माता की आयु एवं धन दोनों का हरण करती है। # जो भूमि नदी के कटाव में हो, पर्वत के अग्र भाग से मिली हो, बड़े पत्थरों से युक्त हो, तेजहीन हो, सूपा की आकृति में हो, गध्य में विकट रुप हो, दीमक एवं सर्प की वामियों से युतः हो, दीर्घ वृक्षों से युक्त हो, चौराहे की भूमि हो, भूत-प्रेत निवास करते हों, श्मशान हो अथवा शनसान के निकटस्थ हो, युद्धभूमि हो, रेतीली हो, इन लक्षणों में किसी एक या अनेक लक्षणों से युक्त भूमि का चयन मन्दिर निर्माण के लिये नहीं करना चाहिये। गृह निर्माण के लिये भूमि का चयन जिस प्रकार किया जाता है, उसी भांति मन्दिर के लिये भी भूमि चयन करना चाहिये। ----------------------- *शस्तौरचिटुमलता मधुरा सुगंधा, स्निग्धा समा न सुषिरा च मही नराणाम्। अप्यध्वजि श्रमविनोदपुपागताना, धत्ते श्रियं किमुत शाश्वतमन्दिरेषु ।। वृहत संहिता ५२/८६ # स्फुटिता च सशल्या च वल्मीकाऽऽ रोहिणी तथा टूरतः परिहर्तव्या कर्तुरस्युर्घनापहा
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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