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(देव शिल्प)
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तिलक सागर आदि प्रासाद सभी देवों के लिये उपयुक्त हैं तथा पूजक एवं निर्माणकर्ता दोनों को कल्याणकारक हैं। इतना अवश्य है कि जिस भी प्रासाद को बनायें, शास्त्र सम्मत ही बनाये, अन्यथा वह अल्पबुद्धि शिल्पकार तथा मन्दिर स्थापनकर्ता, दोनों ही वंशनाश को प्राप्त होते हैं।
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------- *अन्यथा कुरुते यस्तु शिल्पी वाल्पबुद्धिपान । शिल्पिजो निष्कलं चान्ति कर्तृकारापकामौ ।। शि.२.७/१०६ अतः सर्वप्रयत्नेन शास्त्रोष्टेन कारयेत । आयुरारोग्यसौभाग्यं कर्तकारापकस्य च ।1 शि.र. ७/१०७
कशि. र.७/७-११