SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (देव शिल्प २२) यहां स्मरणीय है कि इस यन्त्र को लोहे के किसी टेबल अथवा फर्नीचर पर या ऐरों स्था। जहां लोहा अथवा बिजली का तीव्र प्रवाह समीपस्थ न रखें । जिन यन्त्रों में बिजली की मदद रो चुम्बक निर्माण होता है जैसे बिजली की मोटर अथवा स्थायो चुम्बक वाले रपीकर, माइक आदि के समीप भी यन्त्र को रखने से सही दिशा का ज्ञान नहीं होगा, क्योंकि चुम्बकीय सुई बाहरी विद्युत या चुम्बकीय प्रभाव से प्रभावित होगी तथा तीव्र चुम्बक की तरफ आकर्षित होकर गलत निर्देश करेगी। दिशा निर्धारण की प्राचीन विधि प्राचीन काल में दिशा निर्धारण सूर्योदय एवं सूर्यास्त के आधार पर किया जाता था। रात्रि में दिशा निर्धारण ध्रुव तारा अथवा अवण नक्षत्र के आधार पर किया जाता था। ये विधियां गोटे तौर पर दिशाओं का ज्ञान करा देती थीं किन्तु कउिन थी तथा असावधानी होने की स्थिति में भूल होने की संभावना रहती थी। दिशा निर्धारण की प्रचलित विधि दिन के समय शंकु के आधार पर थी। समतल भूमि पर दिशा का निर्धारण करने के लिए सर्वप्रथम दो हाथ के विस्तार का एक वृत्त बनायें। इस वृत्त के केन्द्र बिन्दु पर बारह अंगुल का एक शंकु स्थापन करें। अब उदयार्ध (आधा सूर्य उदय हो चुके तब) शंकु की छाया का अंतिम भाग वृत्त की परिधि में जहां लगे वहीं एक चिन्ह लगा दें। यही प्रक्रिया सूर्यारत के समय दोहराएं। इन दोनों बिन्दुओं को केन्द्र से मिला देवें । यह दिशा दर्शक पूर्व पश्चिम दिशा है। अब इस रेखा को त्रिज्या मानकर एक पूर्व तथा एक पश्चिम बिन्दु से दो वृत्त बनाए। इसरो पूर्व पश्चिम रेखा पर एक मत्स्य आकृति बनेगी। इसके मध्य बिन्दु से एक सीधी रेखा इस प्रकार खींचे जो गोल के सम्पात के मध्य भाग में लगे जहां ऊपर के भाग में स्पर्श करे उसे उत्तर तथा नोचे के भाग का स्पर्श बिन्दु दक्षिण दिशा उत्तर पश्चिम छाया छापा दक्षिण
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy