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(देव शिल्प
(४०२) १३. इन्द्रनील प्रासाद
तळ का विभाग प्रासाद की वर्गाकार भूमि के १६ भाग करें। उन्नमें दो गाग का कोण, एक मा' का नन्दी, दो माग का प्रतिस्थ, एक भाग की दूसरी नन्दी तथा दो भाग का भद्रा बनायें।
इन सब अंगों का निर्गम समदल तथा भद्र का निर्गग एक भाग रखें। सोलह भाग में गर्भगृह पे चौड़ाई के आठ भाग (वर्गाकार के चौस. ११) करें। गर्भगृह की दीवार एक भाग, परिकामा दो भाग तथा बाहर की दीवार एक भाग रखें।
शिरवर कीसम्जा शिखर की चौड़ाई बारह भाग रखें, नोकर होगा बहावें. कर्ण नन्टी के ऊपर एक तिलक चढ़ायें, दो भाग का प्रत्यंग चढ़ायें . . प्रतिरथ के ऊपर दो श्रृंग पायें, पहला उरुग्नंग छह भाग चौड़ा रखें, गद्र नन्दी के ऊपर एक श्रृंग चढ़ारों,
दुसस उरुश्रृंग चार भाग, इन्द्रप्रसाद
तीसरा उतभंग दो भाग चौड़ा रखें। इन उरुश्रृंगों का निर्गम चौड़ाई से आधा रखें।
तिलक संख्या कर्ण नन्दी ८
श्रृंग संख्या का प्रतिरथ भद्र- नन्द
प्रत्यंग शिखर
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कुल
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