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देव शिल्प
सूत्रधार का सम्मान एवं प्रार्थना
जिनालय का निर्माण प्रारम्भ करने से पूर्व निर्माता शिल्पकार का सम्मान करे । इसी प्रकार कार्य समापन करने के उपरांत भी शिल्पकार का सम्मान करें। निर्माण कार्य समापन के पश्चात निर्माण करवाने वाले स्वामी को सूत्रधार से अनुरोध पूर्वक कहना चाहिये कि "हे सूत्रधार, इस निर्माण कार्य से आपने जो पुण्य लाभ लिया है वह मुझे प्रदान करें।"
इसके उत्तर में सूत्रधार आदरपूर्वक कहे कि "हे स्वामिन्, आपका यह निर्माण अक्षय
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रहे, यह निर्माण आज तक मेरा था, अब यह आपका हुआ
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इसके उपरांत सूत्रधार का भूमि, धन, वस्त्र, अलंकार, वाहन आदि के द्वारा योग्य सत्कार करना चाहिये | अपनी क्षमता के अनुसार वस्त्र, भोजन, ताम्बूल आदि से अन्य कारीगरों को भी उचित सम्मान प्रदान करना चाहिये। अन्य सहयोगी कारीगरों तथा व्यक्तियों का भी यथोचित सम्मान करना चाहिये ।
सूत्रधार का सम्मान करने के उपरांत ही वास्तु में प्रवेश करना चाहिये ।**
* पुण्यं प्रासादजं स्वामी प्रार्थयेत् सूत्रधारतः । सूत्रधारो ददेत् स्वामिन् अक्षयं भवतात् तव । प्रा. मं. ८/८५ ** इत्येवं विधिवद् कुर्यात् सूत्रधारस्य पूजनम् ।
भू वित्त वस्त्रालंकारैः गौ महिष्यश्च वाहनैः । प्रा. पं. ८/८२ अन्येषां शिल्पिनां पूजा कर्तव्या कर्मकारिणाम् । स्वाधिकारानुसारेण वस्त्रेस्ताम्बूल भोजनैः ।। प्रा. मं. ८/८३