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(देव शिल्प
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जिस भूखण्ड पर मन्दिर वास्तु का निर्माण करना है उसकी आकृति पर वास्तु पुरुष की कल्पना करना चाहिये। जिन स्थानों पर वास्तु पुरुष के मर्म स्थान आते हैं वहाँ स्तम्भ आदि नहीं आना। चाहिये । वास्तु पुरुष में स्थित देवताओं को यथा योग्य नैवेद्य अर्पण कर उन्हें अनुकूल रखना चाहिये ।। वास्तु शान्ति की पूजा निर्दिष्ट समयों पर अवश्य करा लेना चाहिये। देवालय की वास्तु शान्ति के लिये ८१ पद का मण्डल बनाकर पूजा करना चाहिये । इरन विषय में परमपूज्य आचार्य परमेष्ठी एवं विज्ञ शिल्प शास्त्रियों से परामर्श अवश्य लेना चाहिये।