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देव शिल्प
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प्रतिमा का मंजन
पर्युषण पर्वराज पूर्व प्रायः सभी मन्दिरों में मूर्तियों का मंजन किया जाता है। इसी भांति किसी विशेष अवसर यथा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा उत्सव आदि के पूर्व भी मन्दिर की प्रतिमाओं का गंजन किया जाता है। जानकारी के अभाव में अथवा असावधानी के कारण प्रतिमाओं को अधिनय पूर्वक परात में एकत्र कर लेते हैं। ऐसा करना अत्यंत अनिष्ट कारक कर्म है।
प्रतिमाओं को स्थान से उत्थापित करने की विधि ठोक वैसी ही है जैसी जीर्णोद्धार के समय प्रतिमा उत्थापन के समय की जाती है। विधिपूर्वक संकल्प करके ही प्रतिमा का उत्थापन करना चाहिये। मूलनायक प्रतिमा वृत्यकार प्रतिमाओं की उत्थापित न करें, वरन् वहीं मंजन कर लेवें ।
प्रतिमा का मंजन करने के लिए पिसी हुई लौंग, रीठे के पानी का तथा उत्तम द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिये । धातु की प्रतिमा पर नीबू, इमली आदि नहीं लगाएं। साबुन, डिटरजेन्ट, लिक्विड, केमिकल आदि प्रतिमा पर न लगायें। किसी भी प्रकार का अशुद्ध द्रव्य प्रतिमा पर कदापि न लगायें।
मंजन कार्य समाप्त होने के उपरांत पूर्ण विनय एवं विधि के साथ प्रतिमा को यथास्थान स्थापित करना चाहिये ।
मन्दिर में अशुद्ध द्रव्य का प्रवेश
यदि किसी असावधानी अथवा अचानक ही कोई ऐसी घटना हो जाये जिससे मन्दिर की शुचिता गंग हो तो तुरंत हो अशुद्ध पदार्थों को वहां से हटवाना चाहिये । यदि मन्दिर में हड्डी, गांस, चरबी, शूकर या गिद्ध, कौआ, कुत्ता आदि मांसभक्षी प्राणी मंदिर में प्रवेश कर जायें तो मन्दिर की शुचिता भंग होती है। मन्दिर में चाण्डाल आदि का प्रवेश अथवा बच्चे द्वारा मल, मूत्र त्याग, वमन अथवा किसी महिला के असमय रजस्वला हो जाने से भी मन्दिर की शुचिता भंग होती है।
ऐसा अवसर आने पर अशुद्ध पदार्थ को तुरन्त हटवायें। धुलाई करवायें, चूना पुतवायें। इराके पश्चात् जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक, शान्तिधारा, पूजा, कोई विशिष्ट विधान, जप, हवन तथा ध्वजारोहण करना चाहिये ।