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(देव शिल्प
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यक्ष मन्दिर अथवा क्षेत्रपाल मन्दिर
राक्ष एवं क्षेत्रपाल जी का स्वतन्त्र मन्दिर भी बनाया जाता है किन्तु यह स्वतन्त्र मन्दिर भी तीर्थंकर (मूलनायक ) मन्दिर के परिसर में ही होना चाहिए। इसका शिखर मूलनायक मन्दिर के शिखर से नीचा हो । मूलनायक मन्दिर के दाहिने तरफ यक्ष मन्दिर बना सकते है। गर्भगृह वर्गाकार बनायें। द्वार चौकोर तथा उदुम्बर आदि से युक्त हों । यक्ष प्रतिमा सौन्य रूप में बनाये।
श्रीफल में भी यक्ष / क्षेत्रपाल की अतदाकार स्थापना की जाती है। इसमें पूरे पिंड पर सिंदूर तेल अर्चन करें। पूजा के लिए नारियल फोड़ने के लिए पृथक स्थान नियत कर देवें । आरती या अखण्ड दीप का स्थान आग्नेय कोण में रखें। प्रतिमा एवं मंदिर निर्माण के सामान्य नियमों का पालन अवश्य करें ।
क्षेत्रपाल देव के विशिष्ट मंदिर
शिखरजी में भूमियाजी, राजस्थान में नाकोड़ा भैरव, सौंदा (कर्नाटक), रतपनिधि (कर्नाटक), ललितपुर, बुरहानपुर आदि में प्रसिद्ध यक्ष मंदिर हैं।
क्षेत्रपाल के विशेष वैभव एवं अतिशय के अनुरूप अनेक स्थानों पर उनके भव्य मन्दिर हैं। ललितपुर के निकट क्षेत्रपाल, बुरहानपुर का क्षेत्रपाल मंदिर तथा दक्षिण भारत का स्तवनिधि के क्षेत्रपाल सारे देश में प्रसिद्ध हैं ।