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(देव शिल्प
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शासक देख देवियां चौबीस तीर्थंकरों के शासन देव-देवियों का उल्लेख सर्वत्र मिलता है। ये प्यंतर जाति के यक्ष-यक्षिणी देव होते हैं । समवशरण में इनका स्थान होता है । इनका मुख्य कार्य जिन शासग की प्रशावना करना है। जिनधर्म के सद्गुणों का प्रभावों का अतिशय कर्म का प्रसार करना इनका कार्य है। इसी कारण धर्मानुयायी मनुष्य इनकी विशेष विनय करते हैं। इनकी प्रतिमाओं की स्थापना गर्भगृह में की जाती है। तीर्थकर के वाम भाग में शासन देवी तथा दाहिनो भाग में शासन देव की स्थापना की जाती
पुराणों में अनेकानेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है जिनमें शारान देव-देवियों ने जिनभक्तों की विभिन्न संकटों से रक्षा की। शासन देवी देवताओं को जिन धर्म का तीर्थंकर अथवा उनरो उत्कृष्ट मानना अथवा तीर्थंकर की अवहेलना करके इन्हीं की पूजा-अर्चना करना घोर मिथ्यात्व है। शासन देव-देवी तीर्थंकर के भक्तों के धर्गमार्ग में सहायक हैं। उन्हें स्वपूजा नहीं, तीर्थंकर पूजा में आनन्द मिलता है। तीर्थंकर पूजकों को स्वधर्मी मानकर वे उनकी सहायता करने में तत्पर होते हैं। तीर्थंकर पूजा करने से अर्जित पुण्य के प्रभाव रो शारान देव-देवियां जिन धर्म उपासकों के संकटों को दूर करने के लिये तत्पर होते हैं।
शासन देव देवियों की प्रतिमाएं जैन स्थापत्य कला के अभिन्न अंग हैं। प्राचीनतम प्रतिमाओं में जैन शासनदेव देवियों की प्रतिमाएं सारे देश में मिलती हैं। अनेकों स्थानों पर स्थित शासन देवियों के मन्दिर अपने चमत्कृत कर देने वाले अतिशय के कारण प्रसिद्ध हैं। इसमें हुम्भच पद्मावती, आरा एवं
रसिंह राजपुरा की ज्वालामालिनी देवी की प्रतिमाएं सारे भारत में विख्यात हैं। पुरातत्व दृष्टि से जैन शासन देव देवियों की प्रतिमाओं का अपना विशिष्ट स्थान है। विषयांतर के भय से यह विस्तार नहीं दिया जा रहा है। पाठक पुरातत्व ग्रन्थों का अवलोकन कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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विशेष - अनेक ग्रन्थों में शासन देव-देवियों के नामांतर मिलते हैं उनसे किसी भी प्रकार का अंतर नहीं है। इनके अनेक नाम होते है। तीर्थकरों के नाम भी अनेक होते हैं जैसे- पुष्पदंत एवं सुविधिनाथ अथवा आदिनाथ एवं ऋषभनाथ अथवा वर्धमान एवं महावीर इसका अर्थ यह नहीं कि वर्धमान पृथक हैं तथा महावीर पृथक। शासन देव-देवियों के नामांतर भी इसी प्रकार हैं। विभिन्न प्रतिष्ठा ग्रन्थों में नाम भेद मिल सम्ते हैं।