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(देव शिल्प
यंत्र
सभी भारतीय धर्म शास्त्रों में यंत्र मंत्र का विशेष महत्व बताया गया है। बीजाक्षरों का नियमित पाठ मंत्र कहलाता है। इसी प्रकार के बीजाक्षरों अथवा अंकों को एक निश्चित रीति से विशिष्ट आकृति अथवा कोष्टक में भरा जाता है। ये यंत्र कहलाते हैं। मंत्रो से भी अधिक यंत्रों का प्रभाव होता है । मंत्रों को सिद्ध करके यंत्रों का निर्माण किया जाता है। इन यंत्रों में अलौकिक शक्ति मानी जाती है। जैन धर्म में भी इनका बड़ा महत्व है। गर्भगृह में भगवान की प्रतिमा के साथ विशिष्ट यंत्रों को रखा जाता है । यंत्र का निर्माण धातु के पत्र पर किया जाता है। भोजपत्र पर भी यंत्र लिखे जाते हैं । मन्दिरों धातु के यंत्रों का ही प्रयोग सामान्यतः किया जाता है। कुछ प्रमुख यंत्रों के नाम इस प्रकार हैं : रत्नत्रय, षोडशकारण, दशलक्षण, भक्तामर, विनायक, ऋषिमंडल, मातृका इत्यादि । यन्त्र स्थापना के लिए निम्न लिखित सावधानियां अवश्य रखना चाहियेः२. यंत्र इस प्रकार रखें कि मूर्ति का चिन्ह न ढके । ३. यंत्र का प्रयोग भागण्डल के स्थान पर न करें। ४. यंत्र उल्टा स्थापित न करें। ५. यंत्र विधिपूर्वक प्रतिष्ठित हों।
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१. मूर्ति के ठीक सामने यंत्र रखें।
६. यंत्र का प्रतिमा की भांति ही पूजा अभिषेक नियमित रुपेण करें।
७. यंत्र विषम संख्या में ही रखें।
८. यंत्र को सिंहासन पर रखकर छत्र लगा सकते हैं। ९. यंत्र किसी सुयोग्य आचार्य या गुरु के निदेशन में ही प्राप्त करें तथा स्थापित करें।
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