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देव शिल्प
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जैनाचार्यों ने अनेकों स्थलों पर मन्दिर में मंगल द्रव्य एवं उपकरणादि दान करने को असीम पुण्यार्जन का हेतु बताया है।
ध्वजा एवं छत्र जिनमन्दिर में अर्पित करना राज्यपद प्राप्ति का निमित्त बनता है। छत्र दान करने से मनुष्य एक छत्र राज्य का अधिकारी होता है। चंवरों के दान से मनुष्य वैभव को प्राप्त करता है तथा सेवकों द्वारा चंवरादि से सेवित होता है। जिन मन्दिर में भामण्डल अर्पित करने से असीम सुख शान्ति की प्राप्ति होती है तथा प्रभाव में वृद्धि होती है। सावयधम्मदोहा / २००/ आ. योगीन्दुदेव
छत्र अर्पण करते समय अधिकतर यह विकल्प उठता है कि ऊपर बड़ा छत्र लगायें या छोटा। सबसे ऊपर सबसे छोटा छत्र लगायें। मध्य में मध्यमाकार छत्र लगायें तथा सबसे नीचे सबसे
बड़ा छत्र लगाना चाहिये ।
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