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________________ देव शिल्प २७२ जैनाचार्यों ने अनेकों स्थलों पर मन्दिर में मंगल द्रव्य एवं उपकरणादि दान करने को असीम पुण्यार्जन का हेतु बताया है। ध्वजा एवं छत्र जिनमन्दिर में अर्पित करना राज्यपद प्राप्ति का निमित्त बनता है। छत्र दान करने से मनुष्य एक छत्र राज्य का अधिकारी होता है। चंवरों के दान से मनुष्य वैभव को प्राप्त करता है तथा सेवकों द्वारा चंवरादि से सेवित होता है। जिन मन्दिर में भामण्डल अर्पित करने से असीम सुख शान्ति की प्राप्ति होती है तथा प्रभाव में वृद्धि होती है। सावयधम्मदोहा / २००/ आ. योगीन्दुदेव छत्र अर्पण करते समय अधिकतर यह विकल्प उठता है कि ऊपर बड़ा छत्र लगायें या छोटा। सबसे ऊपर सबसे छोटा छत्र लगायें। मध्य में मध्यमाकार छत्र लगायें तथा सबसे नीचे सबसे बड़ा छत्र लगाना चाहिये । (क्रा (हीं केवलितो F faz बरहन्त मंगलाम स्वाहा Ubat Dilwale मंगलाव स्वाहा साहू स्वाहा स्वाहा ها अ साहू मंगलाव स्वाहा 2Bj TE 水 SE क्रा (हीं 5 केवलो धम्मो मंगलra स्वाहा (क़ा) ह्रीं umimble niunde लोगुत्तमाय स्वाहा / Suna alhafie thata अरहन्त fate! लोगुसमाय सिय 32 स्वाहा सो समाय लो दूर विनायक यंत्र साह (क्रां ही
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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