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देव शिल्प)
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देवा सुरेन्द्र नर नाग समर्चितेभ्यः पाप प्रणाशकर भव्य मनोहरेभ्यः घंटा ध्वजादि परिवार विभूषितेभ्यो नित्यं नमो जगति सर्व जिनालयेभ्यः
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देवेन्द्र, असुरेन्द्र, चक्रवर्ती, धरणेन्द्र ने जिनकी सम्यक प्रकार से पूजा की है, पापों का नाश करने वाले हैं, भव्य जीवों के मन को आकर्षित करते हैं, घण्टा, ध्वजा, माला, धूपघट, अष्ट मंगल, अष्ट प्रातिहार्य आदि मंगल वस्तुओं के समूह से सुसज्जित हैं, अलंकृत हैं ऐसे तीन लोक में स्थित सभी जिन मन्दिरों के लिये प्रतिदिन / प्रत्येक काल सदा सर्वदा नमस्कार हो । चैत्य भक्ति ६