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(देव शिल्प
(२१५)
ध्वजारोहण मन्न ॐ मो अरिहत्ताणं स्वस्टि भद्रं भवतु सर्व लोकस्य शांतिः भवटु स्ठाः। विशेषः मन्दिर पर ध्वज चढ़ाने के उत्सव में सम्मिलित होना धुग्यवर्धक कार्य है।
ध्वजा प्रथम फड़कने का फलाफल जिस समय ध्वजादण्ड पर ध्वजा चढ़ाई जाती है, उसके उपारांत वायु के प्रवाह से वह ध्वजा फड़फड़ाती है। ध्वजा के प्रथमतः फड़फड़ाने से शुभ-अशुभ लक्षणों के संकेत मिलते हैं । यदि उत्तर की ओर से हवा दक्षिण की ओर चलेगी तो यह दक्षिण की ओर फड़केगी । दक्षिणी तीनों ही दिशाओं में प्रथम फड़कना अशुभ माना जाता है । अग्रलिखित सारणी में दिशानुवार फल दृष्टिगोचर
होते हैं -
ध्वजा प्रथम फड़कने की दिशा पूर्व उत्तर पश्चिम/ बायव्य/ ईशान आग्नेय / दक्षिण/ नैऋत्य
फल सर्वकामना सिद्धि आरोग्य, संपदा शुभ , वृष्टि शांति कराना चाहिये । दान पूजा करें।
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*यावंतः प्राणिन के ते लया कुर्युप्रदक्षिणाम् । टावंत प्रान्पुर्व त्यैव क्रमेण विम्ल पदम ।। १५ आशाधर प्रतिष्ठा सारोद्धार **मुक्त प्राचीनते केतौ सर्वकामान वाप्नुयात । उत्तरांगते तस्मिन स्वस्थारोग्यंच सम्पदः ।। १६ यदि पश्चिमतो यालि दायव्ये वा दिशाश्रये । (शाओवाततो दृष्टिकर्धात केत शभानिसा ।। १७ अन्येस्मिन दिग्विभामेतु केती मरुद्भवशात्। शांतिकं तत्र कर्तव्यं दान पूजा विधानतः ।। १८