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________________ देव शिल्प त्रिशाखा द्वार शाखा की चौड़ाई के चार भाग करें। उसमें दो भाग का रूप स्तंभ बनाएं यह स्तंभ पुरुष संज्ञक है। इसके दोनों तरफ एक एक भाग की शाखा रखें। यह शाखा स्त्री संज्ञक है। रूप स्तंभ का बाहर निकलता भाग एक भाग का रखना श्रेष्ठ है। द्रव्य की अनुकूलता से शाखा के स्तंभ का निकलता हुआ भाग एक, डेढ, पौने दो अथवा दो भाग तक रख सकते हैं। शास्त्रा की चौड़ाई का चौथा भाग शाखा का निकलता भाग रखें। रूप स्तंभ के दोनों तरफ शोभा के लिये एक एक कोणिका बनाएं। इसमें चम्पा के फूलों की अथवा जलवट की आकृति करें। सभी शाखाओं का प्रवेश शाखा की चौड़ाई का चौथा, साढ़े चार अथवा पांचवा भाग करें। द्वार की ऊंचाई चार भाग करके एक भाग की ऊंचाई में द्वारपाल बनायें तथा तीन भाग की ऊंचाई में स्तम्भ और शाखा आदि बनाएं। पंच शाखा द्वार पांच शाखा द्वार की चौड़ाई के छह भाग करें। उसमें एक एक भाग की चार शाखा तथा दो भाग का रूप स्तम्भ बनायें। रुपस्तंभ का निर्गम (निकलता हुआ भाग) एक भाग रखें। इसके दोनों तरफ कोणी बनावें । दूसरी शाखा का निर्गम एक भाग रखें। उसके समसूत्र में चौथी य पांचवीं शाखा एक एक भाग निकलती रखें। स्तंभ का निर्गम सवा अथवा डेढ़ भाग भी रख सकते हैं। द्वार की ऊंचाई का आठवां भाग बराबर शाखा के पेटाभाग की चौड़ाई रखें। पांच शाखाओं का नाम- प्रथम - द्वितीय तृतीयचतुर्थ पंचम - १५३ पत्र शाखा गन्धर्व शाखा रुप स्तंभ खल्व शाखा सिंह शाखा
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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