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(देव शिल्प
गुण
द्वारशाखा द्वार के दोनों पार्थ कलाकों में कई सालमा मामा' बनाये जाते हैं, इन्हे द्वार शाखा कहते हैं अर्थात् द्वार की चौखट के एक पक्खा को द्वार शाखा कहा जाता है। द्वार एक से प्रारंभ कर नौ शाखाओं तक के होते हैं। महेश के प्रासाद में नव शाखा का; अन्य देवों के प्रासाद में सात शाखा का; चक्रवर्ती नरेशों के प्रासाद में पांच शाखा का तथा सामान्य राजाओं का प्रासाद तीन शाखा का द्वार बनाना चाहिये । एक शाखा वाला द्वार द्विजों एवं शूद्रों के लिए आवास में बनायें। जिन मन्दिर में सात या नौशाखा वाला द्वार बनायें।*
शाखाओं के आधार पर द्वारों के नाम , गुण एवं आय# शाखाओं की संख्या नाम
आय नवशाखा पदिगनी
उत्तम
ध्वज आय मुकुली
ज्येष्ठ
ध्या आय सात हस्तिनी
उत्तम
गज आय मालिनी
ज्येष्ठ
खर आय नन्दिनी
उत्तम
वृषभ आय चार गांधारी
मध्यम श्वान आय तोन सुभगा
मध्यम सिंह आय
कनिष्ठ धूम आय एक
स्मरकीर्ति प्रासाद के गद्र आदि तीन, पांच, सात या नव अंग हैं। उनमें जितने अंग का प्रासाद हो उतनी हो शाखाएं बनानी चाहिये। अंग से कम शाखा न बनायें , अधिक बनाना सुखद है। **
शाखा स्तम्भ का निर्गम (निकलता हुआ भाग):द्रव्य की अनुकूलता के अनुसार शाखा के स्तम्भ का बाहर निकलता हुआ भाग एक, डेढ़, पौने दो अथवा दो भाग तक रख सकते हैं । $
पांच
टो
सुप्रभा
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#अप. सू. १३५
एकशावं भवेद द्वारं शने वैश्य जि सदा। समशास्वं च धुमाये श्वाने रामभवायसे || प्रा. मं. ३/५५ ** त्रिपंचराप्तनन्दांगे शाखाः स्युरंगतुल्यकाः। हीनशाखं न कर्तव्यमधिकाढ्यं सुखावहम् ॥ प्रा. मं. ३/५६ $ एकांशं सार्थभागं च पादोजद्रयमेवच । विभागों निर्गमकुर्यात स्तम्भ द्रव्यानुसारतः।। प्रा. म. 3/80