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________________ (देव शिल्प) थरों की सजावट कुम्भा में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का रूप बनाएं। इनमें से एक देव मध्य में तथा शेष दो आजू-बाजू बनाएं। भद्र के कुम्भा में तीन संध्या देवियां सपरिवार बनायें । कोने के कुम्भा में अनेक प्रकार के रूप बनायें । भग मध्य गर्भ में सुन्दर रथिका या गवाक्ष बनायें । कमल पत्र के आकार और तोरणद्वार स्तम्भ बनायें । कोना तथा उपांग की कालना की जंधा में भ्रम वाले स्तम्भ बनायें। सभी मुख्य कोने की जंघा में वर्गाकार स्तंभ बनायें तथा गज, सिंह वरालक एवं मकर के रूपों से शोभायगान करें। कर्ण की जंघा में आठ दिक्पाल पूर्वादि दिशा से प्रदक्षिण क्रम में रखें। नटराज पश्चिम भद्र में, अंधकेश्वर दक्षिण भद्र में, विकराल रूप चंडिका उत्तर दिशा के भद्र रुप में रखें। प्रतिस्थ के भद्र में दिक्पालों की देवियां बनायें। नारिमार्ग (दीवार से बाहर निकला खांचा ) में तपध्यानस्थ ऋषि बनायें। भद्र के गवाक्ष बाहर निकलते हुए शोभायमान करें । मेरु जाति के प्रासादों में मण्डोवर की रचना * जिन मंडोवर में एक से अधिक जंघा होती है उन्हें मेरु मंडोवर कहा जाता है। इन मंडोवर में भरणी के ऊपर खुर, कुम्भ, कलश, अन्तराल, तथा केवाल ये प्रथम पांच थर नहीं बनाये जाते। मंची आदि शेष सब बनाये जाते हैं। अतएव प्रथम खुरा से लेकर भरणी तक नगर जाति के १४४ भाग के मंडोवर के अनुरूप बना लेते हैं। पश्चात् मंत्री आदि का मान इस प्रकार है 5. मंची. २. जंघा ३. उद्गम ४. भरणी - ५. शिरावटी ६. केवाल ७. अंतराल १२७ ९. मंची - १०. जंघा ११. भरणी - १२. शिरावटी - १३. पाट १४. कूटछाध - * प्रा. मं. ३ / २४ से २७ ८ भाग २५ भाग १३ भाग ८ भाग १० भाग ८ भाग २, १/२ भाग ८. छज्जा १३ भाग सभी थरों का निर्गम (बाहर निकलता हुआ भाग) कुम्भा का एक चौथाई भाग के बराबर रखें। - ७ भाग १६ भाग ७ भाग ४ भाग 4 भाग १२ भाग
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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