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(देव शिल्प
प्रासाद की चौड़ाई
पीठ कामान
पीठ की ऊंचाई अंगुल / इंच में
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SK -
१६ १८ २७, १/२
३० ६से १०
१२-२० प्रत्येक हाथ (दो फुट) पर ४ अंगुल/ इंच बढ़ाएं ११ से २०
२२-४० प्रत्येक हाथ (दो फुट) घर ३ अंगुल/ इंच बढाएं २१ से ३६
२४-७२ प्रत्येक हाथ (दो फुट) पर २ अंगुल/ इंच बढाएं ३७ से ५०
७४-१०० प्रत्येक हाथ (दो फुट) पर १ अंगुल/ इंच बढ़ाएं इस प्रकार पचास हाथ की चौड़ाई के भन्दिर की पीट की ऊंचाई ५ हाथ ६ अंगुल आती है। यह मध्यम मान है। ऊंचाई का पांचवा भाग ऊंचाई में कम करें तो कनिष्ठ मान की ऊंचाई होगी। ऊंचाई का पांचवां भाग ऊंचाई बढ़ा दे तो येउनान की नंचाई होगी। ज्येष्ठ मान की पीठ का पांचवां भाग बढ़ा दें तो ज्येष्ठ-ज्येष्ठ मान होगा। ज्येष्ठ माना की पीठ का पांचवां भाग कम कर दें तो ज्येष्ठ-कनिष्ठ मा। होगा। मध्यम मान की पीठ का पांचवां भाग कम कर दें तो कनिष्ठ - मध्यग मान होगा। गध्यम मान की पीठ का पांचवां भाग बढा दें तो मध्यम-ज्येष्ट मान होगा। कनिष्ठ मान की पीट का पांचवां भाग बढ़ा दें तो ज्येष्ठ - कनिष्ठ मान होगा। कनिष्ठ ना-। की पीठ का पांचवां भाग कम कर दें तो कनिष्ठ - कनिष्ट भान होगा।
पीठ की ऊंचाई का मान प्रासाद की चौड़ाई से आधा, तीसरा अथवा चौथाई भाग पीठ की ऊंचाई रख-पा चाहिये। पीठ की ऊंचाई से आधा गान पीत का निर्गम निकलता हुआ भाग रहता है। उप पीट का प्रमाण शिल्पकार अपनी इच्छा के अनुरुप स्थिर करें।
पासायासो अखं तिहाय पायंचपीढ उदो अ। तरसद्धि नियामो होइ उवधी सहिच्छमाणं तु ।। व. सा. 3/3