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देव शिल्प
खर शिला
खर शिला से तात्पर्य ऐसी शिला से है जो जगती के दासा तथा प्रथम भिट्ट के नीचे आधार शिला के रूप में बनाई जाती है। यह पर्याप्त मोटी तथा चौड़ी बनायें। ईंट, चूना, पानी से इसे शक्तिशाली बनाना चाहिये । प्रासाद तल के ऊपर इसे बनायें ।
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खरशिला के मान की गणना #
प्रासाद की चौड़ाई हाथ में कूट में
9
२
२-५
६-९
१०-३०
३१-५०
खरशिला की मोटाई अंगुलो / इंच में
६
प्रति हाथ १ अंगुल / इंच बढ़ाएं प्रति हाथ १/२ अंगुल / इंच बढ़ाएं प्रति हाथ १ / ४ अंगुल / इंच बढ़ाएं
प्रति हाथ १/८ अंगुल / इंच बढ़ाएं
8-90
१२-१८
२०-६०
६२-१००
इस प्रकार ५० हाथ के प्रासाद में १९, १/८ अंगुल की शिला रखें। **
अन्य मत
प्रथम भिट्ट के नीचे कूर्म शिला की मोटाई से अर्धमान की खर शिला की मोटाई रखना
चाहिये ।
११६
*अतिस्थूला सुविस्तीर्णा प्रासादधारिणी शिला । अतीव सुदृढा कार्या इष्टिकाचूर्णवारिभिः । प्रा. पं. ३/१
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"प्रथमभिट्टस्याधस्तात् पिण्डो वर्ण (कर्म) शिलोत्तमा ।
तस्य पिण्डस्य चार्धन स्वरशिला पिण्डमेव च ।। क्षीरार्णव १०२ / ५ # अप. सू. १२३ के मत से