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________________ ११. शब्द संकेत ग्रन्थ के अन्त में शब्द संकेत में प्रयुक्त शब्दों का भावार्थ दिया गया है। सन्दर्भ ग्रन्थ सूची में प्रयुक्त ग्रन्थों की नामावली दी गई है। प. पू. गणाधिपति गणधराचार्य श्री १०८ कुन्थुसागरजी महाराज ने आशीर्वाद देकर हम सबको कृतार्थ किया है। उनका जितना गुणगान किया जाये उतना ही कम है। मैं उनके चरणों में बारम्बार विनयपूर्वक नमोस्तु करता हूँ तथा सतत् उनके आशीर्वाद की कामना करता हूँ । प. पू. युवाचार्य तीर्थोद्धारक गुरुवर प्रज्ञाश्रमण श्री १०८ देवनन्दिजी महाराज की ख्याति सर्वत्र व्याप्त है। निरन्तर ज्ञानयोग में लगे आचार्यवर की करुणामयी दृष्टि से गृहस्थ प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। उनके आशीर्वाद मात्र से गृहस्थों के संकट दूर होते हैं। तीर्थक्षेत्रों के विकास के लिये वे सदैव विचारशील रहते हैं। जिन क्षेत्रों में आचार्यवर ने चातुर्मास किया अथवा विहार किया वहां पर सतत् क्षेत्र के उद्धार के लिये उदारमना श्रावकों को प्रेरित करते रहे। उन क्षेत्रों का तीव्र विकास उनकी कार्यशैली का उदाहरण प्रस्तुत करता है। वात्सल्य मूर्ति, ज्ञानयोगी गुरुवर की मुझ पर बड़ी कृपा दृष्टि है। मुझ सरीखे अल्प बुद्धि साधारण मनुष्य को आपने देव शिल्प ग्रन्थ के सम्पादन का भार सौंप कर महान उपकार किया है। मैंने अपनी समझ से यथाशक्ति इस महान ग्रन्थ का सम्पादन कार्य किया है। विद्वान पाठकों से मेरा अनुरोध है कि मेरी भूलों को नादान समझकर क्षमा करेंगे तथा आगमानुसार यथोचित संशोधन कर लेवेंगे। अन्ततः मैं गुरुवर प. पू. प्रज्ञाश्रमण आचार्य श्री १०८ देवनन्दि जी महाराज के चरण युगलों में पुनः पुनः नमोस्तु करता हूँ तथा उनसे कृपा दृष्टि की याचना करता हूँ। साथ ही समस्त आचार्य संघ के श्री चरणों में भी नमोस्तु, वन्दामि इच्छामि करता हूँ । छिन्दवाड़ा ३/८/२००० सतत गुरुचरणानुरागी, नरेन्द्र कुमार बड़जात्या
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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