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________________ देव शिल्प १०२ विविध देवालय सम्मुख विचार अनेकों बार ऐसे प्रसंग आते हैं जब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि अमुक देव के मन्दिर के समक्ष अन्य किसी देव का मन्दिर बनाया जाये अथवा नहीं ? साथ ही किस देवता के समक्ष किस देव का मन्दिर बना सकते हैं। ऐसा करते समय देवों के स्वभाव- गुण को मुख्य रुप से दृष्टिगत रखा जाता है । स्वजातीय देवों के आपस में या सामने देवालय बनाने में दोष नहीं माना जाता है । जिनेन्द्र प्रभु के मन्दिर के समक्ष जिनेन्द्र प्रभु का अन्य मन्दिर बनाया जा सकता है। फिर भी इतना अवश्य है कि मुख्य प्रासाद के किसी भी ओर अन्य देव का मन्दिर बनाने पर नाभिवैध का परिहार करके ही मन्दिर बनायें अर्थात् प्रासाद के गर्भ को छोड़कर ही मन्दिर का निर्माण करें। जेनेतर देव सम्मुख प्रकरण शिव के सामने शिव मन्दिर स्थापित कर सकते हैं। विष्णु के सामने विष्णु मन्दिर स्थापित कर सकते हैं। ब्रह्मा के मन्दिर के सामने ब्रह्मा का मन्दिर बनाया जा सकता है। सूर्य मन्दिर के सामने सूर्य मन्दिर स्थापित करने में कोई दोष नहीं माना जाता। यहां यह भी स्मरण रखें कि शिवलिंग के समक्ष अन्य कोई देव स्थापित नहीं करना चाहिये। चंडिका देवी मन्दिर के सामने मातृदेवता, यक्ष, भैरव अथवा क्षेत्रपाल के मन्दिर बनाये जा सकते हैं। इसका कारण यह है कि ये देव आपस में समानभावी हितैषी हैं। ब्रह्मा एवं विष्णु के मन्दिर एक नाभि में हो अर्थात् आपस में सामने आयें तो कोई दृष्टि दोष नहीं माना जाता है। किन्तु शिव अथवा जिन देव के समक्ष अन्य देव का मन्दिर कदापि न बनायें । दोष परिहार इस दोष का निरसन एक विशिष्ट परिस्थिति में संभव है, यदि इन दोनों मन्दिरों के मध्य राजमार्ग या मुख्य रास्ता हो अथवा मध्य में दीवार हो तो इस दोष का परिहार हो जाता है । * प्रा.मं. २ /२८, २९, ३०, अप. सू. १०८, प्रा.मं. २ /३१
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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