________________
(देव शिल्प) बावन जिनालयों का स्थापना कम
नन्दीश्वर तोप के बावन जिनालयों की प्रतिकृति बनाने की परपरा प्राचीन काल से ही जैन समाज में प्रचलित है। बावन जिनालयों में पृथक- पृथक जिनालय बनाकर प्रतिमा स्थापित की जाती है। इनका एक विशेष क्रम है, मध्य में मुख्य प्रासाद के बायों तथा दाहिनी ओर सत्रह- सत्रह जिनाला स्थापित करें। पिछले भाग में नौ जिनालय स्थापित करें। आगे के भाग में आठ जिनालय स्थापित करना चाहिये । इस प्रकार बावन जिनालय स्थापित करें। संलग्न चित्रानुसार भी बावन जिनालयों की स्थापना की जाती है।
मध्य लोक के आठवें द्वीप में ये स्थित हैं। ३२ रतिकर, ४ अंजनगिरि, १६ दक्षिभुख- ऐसे ५२ पर्वतों के मध्य भाग में १२ चैत्यालय हैं। ये पूर्वाभिमुखी हैं तथा इनकी लंबाई एवं चौड़ाई १० - १० योजन तथा ऊचाई ७ योजन है। इनके द्वारों की ऊंचाई ८. योजन तथा चौड़ाई ४ योजना है। ये द्वार पूर्व, उत्तर तथा दक्षिण में हैं।*
बहत्तर जिनालयों का कम
मुख्य प्रासाद के बायीं तथा दाहिनी तरफ पचौरस - पच्चीस जिनालय स्थापित करें। पिछले भाग में ग्यारह जिनालय स्थापित करें। आगे के भाग में दस जिनालय स्थापित करें। मुख्य प्रासाद मध्य में रखें।
भूत, भविष्य एवं वर्तमान काल की चौबीस चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिभाएं मिलकर बहत्तर जिनालय बनाये जाते हैं।
*जैन ज्ञान कोश मराठी भाग २/४२५ *बावन जिनालयों के विषय में तत्वार्थ राजवार्तिक में उल्लेख है।