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दव्यसंगह
किसे? जावदियं आयासं जितने प्रमाण आकाश को, किस विशेषता से युक्त? अविभागी पुग्गलाणुवद्धं अविभागी पुद्गल द्रव्य को स्थान देने योग्य। यहाँ पूर्व पक्षकार प्रश्न करता है कि अविभागी पुद्गल द्रव्य के द्वारा जितना आकाश रोका गया है, उसे प्रदेश कहते हैं। उतने प्रदेश में सम्पूर्ण पदार्थों को अवगाहना कैसे होती है? यहाँ कहते हैं - द्रव्यों को अवगाहन देना, आकाश का लक्षण होने से उस में वैसी शक्ति होती है। एक प्रदेश में जीवादि पाँचों का ही समवाय समाहित है, तथापि वह परिणामी है। यहाँ यह दृष्टान्त है - जैसे - गूढ नागरस के गुटके में बहुत से सुवर्ण के प्रवेश करने पर भी उस गूढ़ नागरस की वही मात्रा रहती है, उसी प्रकार आकाश प्रदेश की भी अवगाहना में वैसी ही शक्ति होती है। भावार्थ : जितने आकाश को एक पुद्गल परमाणु रोक लेता है, उतने आकाश को प्रदेश कहते हैं। वह प्रदेश सभी द्रव्यों को स्थान देने में समर्थ है।। 27 ॥
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उत्थानिका : इदानीं जीवानां पुद्गलसम्बन्धे सति परिणामविशेषसंभवात् पदार्थानाह - गाथा : आसवबंधणसंवरणिजरमोक्खो सपुण्णपावा जे।
___ जीवाजीवविसेसा ते वि समासेण पभणामि।। 28।। टीका : ते वि समासेण पभणामि - तेऽपि संक्षेपेण प्रभणामि। ते के? जे ये आसवबंधणसंवरणिज्जरमोक्खो सपुण्णपावा जे - | आस्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षाः सपुण्यपापाः, कथंभूताः? एते जीवाजीवविसेसा अत्र जीवपुद्गलयोर्विशेषाः। यतो जीवस्य