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दवसंगर निरवधिकालनिरवधिमर्यादिकृत्य एकसमयान्तरमपि न कदाचिदन्यथाभावो वीर्यम्। केवलज्ञानी एव यदमूर्तसिद्धस्वरूपं परिचेत्तुं शक्नोति नान्यः सूक्ष्मत्वम्। एकस्मिन्सिद्धस्वरूपे असंख्यातानां सिद्धानामेकत्रसमवस्थितानामवकाशोऽवगाहनम्। नैव गुरुत्वं नैव लघुत्वमगुरुलघुत्वम् । आराम सिद्धानमा कसरिता परस्परांशाणभावोऽव्याबाधं
चेति। एवमष्टगुणसमन्विताः। किंचूणा चरमदेहदो चरमदेहतः किंचूनविभागेन हीनाः, लोयाग्गठिदा लोकाग्रस्थिताः, णिच्या नित्याः तेषां काले कल्प इति गतेऽपि गतिप्रच्युति स्ति। तथा उप्पादवएहि संजुत्ता उत्पादव्ययाभ्यां युक्तास्तौ द्वौ चोत्पादव्ययावाग्गोचरौ सूक्ष्मी, प्रतिक्षणविनाशिनौ। उक्तं च -
सूक्ष्मद्रव्यादभिन्नाश्च ध्यावृताच परस्परम्।
उत्पद्यन्ते विपद्यन्ते जलकल्लोलवज्जले ।। उत्थानिका : और वे जीव सकल कर्मों के क्षय से सिद्ध होते हैं, ऐसा कहते हैं - गाथार्थ : [णिकामा ] कर्मरहित [ अट्ठगुणा] आठ गुणों से सहित [ चरमदेहदो] चरम देह से [किंचूणा] किंचित् न्यून [ णिच्चा ] नित्य [ उप्पादवएहि ] उत्पाद और व्यय से [ संजुत्ता] संयुक्त [ लोयाग्गट्ठिदा ] लोकाग्र पर स्थित [ सिद्धा] सिद्ध हैं।। 14 ।। टीकार्थ : और वे पूर्वकथित जीव सिद्ध होते हैं। किस प्रकार होते हैं? णिक्रम्मा ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय-वेदनीय-मोहनीय-आयु-नाम--गोत्रअन्तराय इन आठ कर्मों से रहित हैं। अट्ठगुणा -
सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, वीर्य, सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व और अव्याबाधत्व ये आठ गुण सिद्धों के होते हैं।
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