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'दख्खसंगह
मान लेने पर ब्रह्मदेव द्वारा नेमिचन्द्र गणि के विषय में ज्ञात सूचनाओं को द्रव्यसंग्रहकार नेमिचन्द्र के साथ भी जोड़ दिया गया हो तो आश्चर्य की बात नहीं।
5. इस सन्दर्भ में यह भी महत्त्वपूर्ण है कि द्रव्यसंग्रह पर लिखी प्रभाचन्द्र की प्रस्तुत संस्कृत अवचूरि में ब्रह्मदेव की वृत्ति की तरह कोई भी उल्लेख नहीं है ।
6. ब्रह्मदेव की टीका के आधार पर द्रव्यसंग्रहकार नेमिचन्द्र के विषय में विचार करने वाले विद्वानों ने त्रिलोकसार तथा लब्धिसार के ऊपर उद्धृत सन्दर्भों को सर्वथा छोड़ दिया है।
7. वसुनन्दि द्वारा उल्लिखित नेमिचन्द्र को नाम साम्य के कारण द्रव्यसंग्रह का कर्ता मान लेने का सुझाव प्रमाणों के अभाव में स्वीकार्य नहीं हो सकता । दोनों की गुरु परमतत्र है। सुनन्द द्वारा लिखित नेमिचन्द्र के गुरु नयनन्दि हैं तथा त्रिलोकसार के उल्लेख के अनुसार द्रव्यसंग्रहकार नेमिचन्द्र अभयनन्दि के शिष्य हैं। इसी प्रकार अपभ्रंश सुदंसणचरिउ के रचयिता नयनन्दि माणिक्यनन्दि के शिष्य हैं तथा वसुनन्दि द्वारा उल्लिखित नयनन्दि श्रीनन्दि के शिष्य हैं। वसुनन्दि कृत प्राकृत उवासयाझयणं तथा नयनन्दि कृत अपभ्रंश सुदंसणचरित्र में प्रशस्तियाँ उपलब्ध हैं। इसलिए उन के विवरणों में किसी प्रकार के विवाद की स्थिति नहीं है ।
8. ब्रह्मदेव की टीका में नेमिचन्द्र को जहाँ सिद्धान्तिदेव कहा है, वहीं अनेक स्थलों पर उन्हें ' भगवन्' जैसे पदों से भी सम्बोधित किया है। पारस्परिक सिद्धान्तों के संरक्षण के लिए विशेषरूप से प्रयत्नशील आचार्यों के लिए प्रयुक्त 'सिद्धान्तिदेव' एक गरिमामय अभिधान है।
9. द्रव्यसंग्रह अवचूरि में नेमिचन्द्र को महामुनि सिद्धान्तिक कहा गया है। 10. उक्त तथ्यों के आलोक में यह कहना उपयुक्त होगा कि द्रव्यसंग्रह के कर्त्ता, समय, स्थान, गुरु-शिष्य परम्परा के विषय में ब्रह्मदेव के विवरण के समर्थक अन्य पुष्ट प्रमाण जब तक उपलब्ध नहीं हो जाते तब तक ऐसे महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक विषयों पर कल्पना और अनुमान के आधार पर निष्कर्ष प्रस्तुत करना उचित नहीं हैं। द्रव्यसंग्रह और त्रिलोकसार के रचयिता की एक मानने का स्पष्ट आधार उपलब्ध है ही ।