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व्यसंगत ॥लिपिकार कृत प्रशस्ति ।
इति द्रव्यसंग्रहटीकावचूरि सम्पूर्णः। संवत् 1721 वर्षे चैत्रमासे शुक्लपक्षे पंचमी दिवसे पुस्तिका लिखापितं सा. कल्याणदासेन।
इति॥ इस प्रकार द्रव्यसंग्रह की अवचूरि टीका पूर्ण हुई। संवत् 1721 में चैत्रमास के शुक्लपक्ष में पंचमी तिथि के दिन यह पुस्तक कल्याणदास के द्वारा लिखी
गई।
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॥ श्री॥ तत्त्वज्ञान से हान-उपादान और उपेक्षा के भाव मन में भर देता है। इस से हिताहित का विवेक जागृत होता है, तनावजन्य अवस्था समाप्त होती है, संसार-शरीरभोगों से विरक्ति होती है, कषायें शान्त हो जाती हैं, वासनाएं विलीन होने लगती है, आत्मा को तुष्टि और पुष्टि मिलती है तथा जीवन में परम सन्तोष प्राप्त होता है। अत: तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिए मुमुक्षु को सदैव सत्प्रयत्न करना चाहिये।
- मुनि सुविधिसागर